पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२४५

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? १९४ ] ३-महावग्ग [ ४४४१५ इस भिक्षुकी प्रवारणा स्थगित की है वह क्या देखेसे स्थगित की है, सुनेसे स्थगित की है, या शंकाके कारण स्थगित की है ? यदि वह कहे-'देखेसे मैंने स्थगित की है, या सुनेसे मैंने स्थगित की है, या संदेहसे मैंने स्थगित की है, तो उसको ऐसा कहना चाहिये—आवुस ! जोकि तुमने इस भिक्षुकी प्रवारणा देखे (दोप) के कारण स्थगित कर दी तो क्या तुमने देखा, कैसे देखा, कब तुमने देखा, कहाँ तुमने देखा कि उसने पाराजिकका अपराध किया संघा दि से स का अपराध किया, थुल्ल च्च य, पा चि त्ति य, पा टि दे स नि य, दुक्क ट, दुर्भा प ण का अपराध किया ? (उस वक्त) कहाँ तुम थे और कहाँ यह भिक्षु था । क्या तुम करते थे और क्या यह भिक्षु करता था ? यदि वह ऐसा कहे-'आवुसो ! मैं इस भिक्षुकी प्रवारणाको देखे (अपराध) से स्थगित नहीं करता, वल्कि सुने (अपराध ) से स्थगित करता हूँ।' तो उसको कहना चाहिये-'आवुस ! जोकि तुमने इस भिक्षुकी प्रवारणाको सुने (अपराध) से स्थगित किया, तो तुमने क्या सुना, कब सुना, कहाँ सुना, कि इसने पा रा जि क० दुर्भा प ण का अपराध किया ? भिक्षुसे सुना या भिक्षुणीसे सुना, या शिक्षमाणासे सुना या श्रामणेरसे सुना या श्रामणेरीसे सुना, या उपासकसे सुना, या उपासिकासे सुना, या राजासे सुना, या राजाके महामात्यसे सुना, या तीथिकोंसे सुना या तीथिकोंके अनुयायियोंसे सुना ?' यदि वह ऐसा कहे—'आत्रुसो ! मैं इस भिक्षुकी प्रवारणाको सुने अपराधसे स्थगित नहीं करता बल्कि संदेहसे स्थगित करता हूँ'; तो उससे ऐसा पूछना चाहिये—'आबुस ! जो तूने इस भिक्षुकी प्रवारणाको संदेहसे स्थगित किया है, तो तू क्या संदेह करता है, कैसे संदेह करता है, कब संदेह करता है, कहाँ संदेह करता है, कि इसने पा रा जि क० दुर्भा पण का अपराध किया ? भिक्षुसे सुनकर संदेह करता है । या तीथिकोंके अनुयायियोंसे सुनकर संदेह करता है ?' यदि वह ऐसा कहे-आवुसो ! मैं इस भिक्षुकी प्रवारणाको संदेहले नहीं स्थगित करता बल्कि मैं नहीं जानता कि मैं क्यों इस भिक्षुकी प्रवारणाको स्थगित करता हूँ । यदि भिक्षुओ ! वह दोषारोपण करनेवाला (चो द क) भिक्षु प्रत्युत्तर (=अनुयोग )से जानकार गुरुभाइयों (=स-ब्रह्मचारियों) के चित्तको संतुष्ट न कर सके तो कहना चाहिये कि उसका दोषा- रोपण ठीक नहीं । यदि भिक्षुओ ! दोपारोपण करनेवाला भिक्षु प्रत्युत्तरसे स-ब्रह्मचारियोंके चित्तको संतुष्ट कर सके तो कहना चाहिये उसका दोपारोपण ठीक है । यदि भिक्षुओ! दोपारोपण करनेवाला भिक्षु विना जळके पा रा जि क (दोप) लगानेको स्वीकार करे तो उसपर संघा दि से स (दोष) का आरोप कर संघको प्रवारणा करनी चाहिये । यदि वह दोपारोपण करनेवाला भिक्षु बिना जळके सं घा दि से स दोप लगानेको स्वीकार करे तो उसपर धर्मानुसार (दंड) करवाके संघको प्रवारणा करनी चाहिये ।० विना जळके थु ल्ल च्च य० दुर्भापण (दोप) लगानेको स्वीकार करे तो धर्मानुसार (दंड) करवाके संघको प्रवारणा करनी चाहिये । यदि भिक्षुओ ! वह भिक्षु जिसपर दोषारोपण किया गया है, (अपनेको) पा रा जि क का दोपी स्वीकार करता है तो उसे (हमेशाके लिये संघसे) निकालकर संघको प्रवारणा करनी चाहिये । यदि भिक्षुओ ! वह भिक्षु जिसपर दोपारोपण किया गया है, संघा दि से स का दोपी (अपनेको) स्वीकार करता है तो उसपर संघा दि से स दोप लगाकर संघको प्रवारणा करनी चाहिये । यदि० थुल्ल च्च य० दुर्भा पण का दोपी (अपनेको) स्वीकार करता है तो, धर्मानुसार (दंड) करवाके संघको प्रवारणा करनी चाहिये । 845 २--"यदि भिक्षुओ ! एक भिक्षुने प्र वा र णा के दिन थु ल्ल च्च य दोप किया हो और कोई कोई भिक्षु (उस भिक्षुके दोपको) थु ल्ल च्च य समझते हों, और कोई कोई संघादिसेस ; तो जो भिक्षु थुल्लच्चय समझनेवाले हैं वह उस भिक्षुको एक ओर लेजाकर धर्मानुसार (दंड) करवाकर संघर्म !