पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२५४

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1 - ५७१।३ ] अर्हत्वका वर्णन [ २०३ रहित) हो मुक्त हए; किन्तु भन्ते ! ऐसा नहीं देखना चाहिये०१ मोह-रहित हो द्रोहरहित होनेके कारण मुक्त होता है । शायद भन्ते ! ० (विषयोंके) ग्रहण (=उपादान) के क्षयसे मुक्त हुए हैं । ० २ मोहरहित हो (विषयोंके) ग्रह्णके आयसे मुक्त होता है। (५) शायद भन्ते ! ० तृष्णाके क्षयके कारण मुक्त हुए है० : मोहरहित हो तृप्णाके क्षयके कारण मुक्त होता है। (६) शायद भन्ते ! ० मोहके नाशसे मुक्त हुए हैं." मोहरहित हो मोहके नाशसे मुक्त होता है। "भन्ते ! इस प्रकार अच्छी तरहसे जिसका चित्त मुक्त होगया है, ऐसे भिक्षुके सामने यदि आँख द्वारा जानने योग्य रूप बार-बार भी आएँ तो भी उसके चित्तमें नहीं लिपट सकते । उसका चित्त निलेप ही रहेगा। स्थिर और अ-चंचलही रहेगा और वह उसके व्यय (=विनाश) को देखेगा । यदि कान द्वारा जानने योग्य शब्द ० बार बार भी आवें। यदि नाक द्वारा जानने योग्य गंध वार वार भी आवें । यदि जिह्वा द्वारा जानने योग्य रस बार वार भी आवें० यदि काया द्वारा जानने योग्य (शीत उप्ण आदिवाले) स्पर्श वार वार भी आवें० । ० यदि मनद्वारा जानने योग्य धर्म बार बार भी आवें तो भी उसके चित्तमें नहीं लिपट सकते । उसका चित्त निर्लेप ही रहेगा। स्थिर और अ-चंचल ही रहेगा और वह उसके व्यय (=विनाश) को देखेगा। जैसे भन्ते ! छिद्र-रहित, दरार-रहित, ठोस पथरीला पर्वत हो, तो चाहे (उसकी) पूर्व दिशासे भी वार वार आँधी-पानी आये किन्तु उसे कम्पित, सम्प्रकम्पित - सम्प्रवेपित नहीं कर सकता; पश्चिम दिशासे भी०; उत्तर दिशासे भी०; दक्षिण दिशासे भी वार बार आँधी-पानी आये किन्तु उसे कम्पित० नहीं कर सकता। ऐसेही भन्ते! इस प्रकार अच्छी तरहसे जिसका चित्त मुक्त होगया है। उसके व्यय (=विनाश)को देखेगा।- निप्कामतासे मुक्त, विवेक-युक्त चित्तवाले, अद्रोहसे मुवत और उपादान-क्षयवाले; तृष्णाके क्षयने मुक्त, सम्मोह-रहित-चित्तवाले (पुरुष) का, चित्त आयतनोंकी उत्पत्तिको देखकर मुक्त होता है । उस अच्छी तरहसे मुक्त, शान्त चित्तवाले भिक्षुको, विर्य (कामों) का संचय नहीं, न कुछ करणीय शेप है। जैसे ठोस पहाळ हवासे कंपायमान नहीं होता, इसी प्रकार प्रिय रूप, रस, शब्द, गंध, और स्पर्श; (यह) पदार्थ अनित्य हैं और वह अर्हत्को कंपित नहीं करते । वह विनाशको देखता है और उसका चित्त सुमुक्त हो स्थित होता है। तब भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! ल प्रकार कुलपुत्र लोग अर्हत्व-प्राप्तिको वखानते हैं; (जिममें कि) वात भी कह दी जाती है. और आत्म-दलाघा भी नहीं होती, किन्तु कोई कोई मोघ-पुरुष तो मानो परिहास मन्ते अद-प्राप्तिको बालानते हैं, वह पीछे विनामको प्राप्त होते हैं।" पि. भगवान्ने आदपमान लोण को संबोधित किया- पर विहानता'को जगहपर 'द्रोहरहित' शब्दको रख दाकी उसी तरह समझना चाहिये। 'उपर निजामता की जगह पर, दिषयोंके ग्रहणके क्षय' वाश्यको रख दाकी उसी तरह समाना चाहिये । पर निकामनायी जगह तृष्णारे क्षपदास्पको रख, दाकी उसी तरह समझना चाहिये । 'पर निशाना डी जगह मोहरे नाने' दारको रख दाकी उमी नम्ह ममदाना चाहिये।