पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२५५

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! o २०४ ] ३-महावग्ग [ ५११५ “सो ण तू सुकुमार है, सो ण! अनुमति देता हूँ तेरे लिये एक तल्लेके जूतेकी।" "भन्ते ! मैं अस्सी गाळी हिरण्य (=अशर्फी) और हाथियों के सात अनी क'को छोळ घरसे वेघर हो प्रव्रजित हुआ। मेरे लिये (लोग) कहनेवाले होंगे सो ण कोटिवीस अस्सी गाळी अशर्फी और हाथियोंके सात अनीकको छोळकर प्रबजित हुआ, सो बह अब एक-तल्ले जूतेमें आसक्त हुआ है। यदि भगवान भिक्षु-संघके लिये अनुमति दें तो मैं भी इस्तेमाल करूंगा। यदि भगवान् भिक्षु-संबके लिये अनुमति नहीं देंगे तो मैं भी इस्तेमाल नहीं करूंगा।" (४) एक तल्लेके जूनेका विधान तब भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ एक तल्लेवाले जूते की । भिक्षुओ! दो तल्लेवाले जूतेको नहीं धारण करना चाहिये, न तीन तल्लेवाले जूतेको धारण करना चाहिये, न अधिक तल्लेवाले जूतेको धारण करना चाहिये जो धारण करे उसे दुक्कटका दोप हो।" उस समय षड् वर्गी य भिक्षु सारे नीले रंगके जूतेको धारण करते थे, सारे पीले०, ० सारे लाल०, ०सारे मजीठिया (रंगके) ०, ०सारे काले०, ०सारे महारंग-से-रॅगे०, सारे महानाम-(रंग) से-रँगे जूतोंको धारण करते थे। लोग हैरान.. होते थे- (कैसे पड्वर्गीय भिक्षु सारे नीले रंगके जूते को ० धारण करते हैं) जैसे कि काम-भोगी गृहस्थ !' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! सारे नीले० सारे महानाम- (रंग) से-रंगे जूतोंको नहीं धारण करना चाहिये । जो धारण करे उसे दुक्क ट का दोष हो।"2 (५) जूतोंके रंग और भेद १.-उस समय षड्वर्गीय भिक्षु नीलीपत्तीवाले जूतोंको धारण करते थे, पीली पत्तीवाले०, ०लाल पत्तीवाले०, ०मजीठिया रंगकी पत्तीवाले०, ०काली पत्तीवाले०,०महारंगसे रंगी पत्तीवाले०, ०महानाम (रंग) से रंगी पत्तीवाले जूतोंको धारण करते थे। लोग हैरान.. होते थे (०) जैसे कि काम- भोगी गृही। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! नीली पत्तीवाले० महानाम (रंग) से रँगी पत्तीवाले जूतेको नहीं धारण करना चाहिये। जो धारण करे उसे दुक्कटका दोप हो।"3 २–उस समय षड्वर्गीय लोग ऍळी ढकनेवाले जूतोंको धारण करते थे, पुट-ब द्ध जूतेको धारण करते थे, प ळि गुं टि म जूतेको धारण करते थे, रुईदार जूतेको धारण करते थे, तीतरके पंखों जैसे जूतोंको धारण करते थे, भेळेकी सींग बँधे हुए जूतोंको धारण करते थे, बकरेकी सींग बँधे जूतोंको धारण करते थे, विच्छूके डंककी तरह नोकवाले जूते धारण करते थे, मोर-पंख-सिये जूतोंको धारण करते थे, चित्र-जूतेको धारण करते थे । लोग हैरान. . .होते थे—(०) जैसे काम-भोगी गृही। भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ ! ऍड़ी ढंकनेवाले० चित्र-जूतेको न धारण करना चाहिये। जो धारण करे उसे दुक्कटका दोष हो ।"4 ३–उस समय पड्वर्गीय भिक्षु सिंह-चर्मसे वने जूतेको धारण करते थे, व्याघ्रके चर्म०, चीते १छ हाथी और एक हथिनीका अनीक होता है । यूनानी लोगोंके जूतों जैसे (--अठ्ठलथा)। आजकलके 'बूट' की तरह सारे पैरको ढाँकने वाला जूता ।