%3B ५७३।२] सीमान्त-देशोंमें विशेप नियम [ २१३ पाठ किया। तब भगवान्ने आयुष्मान् सोणके स्वरयुक्त पाठ के ख त म हो जाने पर उनका अनुमोदन किया।- "माधु, साधु भिक्षु ! तूने सोलह अटक व ग्गि क्कों को अच्छी तरह ग्रहण किया है, अच्छी तरह मनमें किया है, अच्छी तरह धारण किया है । सुन्दर स्पष्ट सरल अर्थ द्योतक वाणीसे युक्त है । भिक्षु ! तू कितने वर्षका (भिक्षु) है ? 'भन्ते ! मैं एक वर्षका हूँ।- "भिक्षु ! तूने इतनी देर क्यों लगाई।" "भन्ते ! देरने कामोंके दुष्परिणामको देख पाया । और गृहवास बहु-कार्य-बहु-करणीय गंबाध (बाधायुक्त) होता है ।" भगवान्ने इस अर्थको जानकर उसी समय इस उदानको कहा- "लोकके दुष्परिणामको देख और उपधि-रहित धर्मको जानकर; आर्य पापमें नहीं रमता, शुचि (= पवित्रात्मा) पापमें नहीं रमता ।" तब आयुप्मान् सोणने-'भगवान् मेरा अनुमोदन कर रहे हैं, यही इसका समय है'.. ( सोच ) आसनने उठ, उत्तराखंग एक कन्धेपर कर भगवान्के चरणोंपर सिरसे पळकर, भगवान्ने कहा-~~ "भन्ते ! मेरे उपाध्याय आयुप्मान् महाकात्यायन भगवान्के चरणोंमें सिरसे वन्दना करते है, और यह कहते हैं- "भन्ने ! अदन्ति-दक्षिणा-पथमें बहुत कम भिक्षु हैं ०, अच्छा हो भगवान् चीवर-पर्याय ( =विकल्प ) कर दें ?" (२) सीमान्त देशोंमें विशेष नियम तब भगवान्ने इसी प्रकरणमें धार्मिक-कथा कहकर भिक्षुओंको आमंत्रित किया- "भिक्षुओ ! अवन्ति-दक्षिणापथमें बहुत कम भिक्षु हैं । भिक्षुओ ! सभी प्रत्यन्त जनपदों ( सीमान्त देशों) में विनयधरको लेकर पांच, (कोरम वाले) भिक्षुओंके गणमे उपसंपदा (करने) की अनुमति देता हूँ।" 27 यहाँ यह प्रत्यन्त (नीमान्त) जनपद हैं-पूर्व दिगामें क जंग ल' नामक निगम (=कसबा) है, जनवं बाद बले. मात्र ( के जंगल ) है, उसके परे 'इधरने बीचमें' प्रत्यन्त जनपद हैं। पूर्व-दक्षिण दिशामें स ल ल व ती नामक नदी है, उनने परे, इधग्ने वीचमें (ओरतो मझे) प्रत्यन्त जनपद है । दक्षिण दिगाने ने त कणि क नामक निगम है ० । पश्चिम दिगामें थूप' नामक ब्राह्मण- माम । । उत्तर दिगामें नीम दज नामक पर्वत, उमन परे ० प्रत्यन्त जनपद हैं। भिमान प्रकारले प्रत्यन्त जनपदोंमें अनुनादेता है-विनयधर महित पाँच भिक्षुओं जाने पगंगा करने की। . . . . .28 भटनमाल-देनों में पवाले मानह 129 (लंगान पंकजोल (जिला-बाल परगना, विहार) । दर्तगान लिई नदी (जिला हजागेदार और बीरभूम) । मारण जिलने कोई मान ! 'गनिम पावर। हरिद्वार मीर।
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