पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२६५

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२१४ ] ३-महावग्ग [ ५३२ "० नित्य-स्नान 0 1 30 ० सब चर्म–मेप-चर्म, अज-चर्म मृग-चर्म जैसे भिक्षुओ ! मध्य देशों (=युक्त प्रान्त, बिहार) में एरगू मोरग, मज्जारू जन्तु हैं ऐसेही भिक्षुओ ! अवन्ती दक्षिणापयमें मेप-चर्म, अज-बर्म, मृग-चर्म ( आदि ) चर्मके विछौने हैं ० । 31 अनुज्ञा देता हूँ. . (चीवर) उपभोग करनेकी, वह तब तक (तीन चीवरमें) न गिनाजाय, जब तक कि हाथमें न आजाय ।" 32 चम्मक्खन्धक समाप्त ||५||