पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२६६

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६-भैषज्य-स्कंधक १--औषध और उसके बनानेके साधन । २-स्वेदकर्म तथा चीर-फाळ आदि की चिकित्सा । ३---आराममें चीजोंको रखना संभालना आदि । ४--अभक्ष्य मांस । ५-संघाराममें चीजोंके रखनेके स्थान | ६-गोरस और फलरस आदिका विधान । ६१-औषध और उसके बनानेके साधन १-श्रावस्ती (१) पाँच भैषज्योंका विधान १-उस समय बुद्ध भगवान् श्रा व स्ती में अ ना थपि डि क के आराम जेतवनमें विहार करते थे। उस समय भिक्षु शरदकी बीमारी (=जाळा बुग्वार) से उठे थे, उनका पिया यवागू (=खिचळी) भी वमन होजाता था, खाया भात भी वमन होजाता था, इसके कारण वह कृश, रुक्ष और दुर्वर्ण पीले पीले नसोंमें-सटे-शरीर वाले हो गये थे। भगवान्ने उन भिक्षुओंको कृश० नसोंमें-सटे-शरीरवाला देखा । देखकर आयुष्मान् आनन्दसे पूछा- "आनन्द ! क्यों आजवल भिक्षु वृश० नसोंमें-सटे-शरीर वाले है ?" "इस समय भन्ते ! भिक्षु शरदवी बीमारीसे उठे हैं, उनका पिया यवागू भी वमन हो जाता है नसोंग-सटे-शरीर दाले हो गये हैं।" तब एकान्तमें स्थित हो विचार मग्न होते समय भगवान्के मनमें न्याल पैदा हुआ-'इस समय भिक्षु शन्दकी बीमारीसे उठे हैं। नसोंमें-सटे-गरीर वाले हो गये हैं । क्यों न मैं भिक्षुओंको (ऐसे ) में पज्य (औपध) की अनुमति दं, जिसको लोग भैपज्य मानते हों जो आहारका काम भी कर सके, किन्तु न्यूल-आहार न समझा जाये ।' तब भगवान्को यह हुआ—यह पाँच भैपज्य है जो विः-घी, मकरजन, तेल, मधु और मांड-इन्हें लोग नैपज्य भी मानते हैं, और यह आहारका काग भी कर सकते हैं, किन्तु स्थूल-आहार नहीं समझे जाते। क्यों न मैं इन भिक्षुओंको इन पांच भपज्योको समयसे लेकर समयपर उपयोग करनेकी अनुमति दूं।' तद भगवान्ने नापंकालको एकाल चिन्तनने उठकर इसी मंबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक नाका भिक्षुओको संबोधित किया- शिशुको ! आज एकान्त धित हो विचार-मन्न होते ममय मेरे मनमें ख्याल पैदा हुआ- मा दिदी टीगारीने स्टे है। वनों न मैं निभुओंगे ( ऐने ) भैषज्यकी अनुमति दं।' भुति देवा पांच पम्योड़ी पूर्वाह्म में लेकर पूर्वाहामें मेवन करनेकी ।"। ....र म विनर वनोंको पूर्वाह में लेकर पूर्वाहमें मेवन करते थे। उनको ।