पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२६७

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२१६ 11 ३-महावग्ग [ ६७१।४ जो वह रूखे भोजन थे वह भी अच्छे न लगते थे । चिकने ( भोजनों )की तो बात ही क्या ? और वह शरद्की बीमारीसे उठनेपर उससे और भोजनके अच्छे न लगने इन दोनों कारणोंसे और भी अधिक कृश० नसोंमें-सटे-शरीर वाले थे । भगवान्ने उन भिक्षुओंको और भी अधिक कृश० देखा। देखकर आयुष्मान् आनन्दसे पूछा- "आनन्द ! क्यों आजकल भिक्षु और भी अधिक कृष० हैं ?" "भन्ते ! इस समय भिक्षु उन पाँच भैपज्योंको पूर्वाह्नमें लेकर पूर्वाह्नमें सेवन करते हैं। उनको जो वह रूखे भोजन हैं वह भी अच्छे नहीं लगते० नमोंमें सटेगरीरबाले हैं।" तव भगवान्ने इसी प्रकरणमें, इसी संबंधमें बार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ उन पाँच भैपज्योंको ग्रहणकर पूर्वाह्न (काल)में भी अप- राण (=विकाल) में भी सेवन करनेकी ।" 2 (२) चर्वीवाली दवा उस समय रोगी भिक्षुओंको चर्तीकी दवाईका काम था। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देताहूँ चर्वीकी दवाईकी, ( जैसेकि ) रीछकी चर्वी, मछलीकी चर्बी, सोंसकी चर्बी, सुअरकी चर्वी, गदहेकी चर्वी, काल (पूर्वाण) में लेकर कालसे पका कालसे, तेलके साथ मिलाकर सेवन करनेकी। भिक्षुओ ! यदि विकालसे ग्रहण की गई हों, विकालसे पकाई और विकालसे खिलाई गई हों ( और ) भिक्षुओ ! उनका सेवन करे तो तीनों दुक्कटोंका दोप हो । यदि भिक्षुओ! कालसे लेकर विकालसे पका, विकालसे मिला उनका सेवन करे तो दो दुक्कटोंका दोष हो । यदि भिक्षुओ ! कालसे लेकर कालसे पका, विकालसे उनका सेवन करे (तो) एक दुक्कटका दोष हो । यदि भिक्षुओ ! कालसे ले कालसे पका कालसे मिला उनका सेवन करे तो दोप नहीं।" 3 (३) मूलकी दवाइयाँ १-उस समय रोगी भिक्षुओंको जड़ वाली दवाओंका काम था। भगवान्से यह बात कही।- भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ जळवाली दवाओंकी ( जैसेकि ), हल्दी, अदरक, बच, वचस्थ (=वच ), अतीस, खस भद्रमुक्ता ( =नागरमोथा ), और जो कोई दूसरी भी जळवाली दवाइयाँ हैं, जोकि न खाद्य हैं, न खानेके काम आती हैं, न भोज्य हैं न भोजनके काम आती हैं, उन्हें लेकर जीवन भर रखनेकी । प्रयोजन होनेपर सेवन करनेकी, प्रभोजन न होनेपर सेवन करने वाले को दुक्कटका दोष हो।"4 २-उस समय रोगी भिक्षुओंको पिसी हुई जळवाली दवाइयोंका काम था । भगवान्से यह वात कही।- 'भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ खरल-बट्टेकी।" 5 (४) कपायकी दवाइयाँ उस समय रोगी भिक्षुओंको कपायकी दवाईका काम था। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ कपायवाली दवाइयोंकी (जैसा कि)-नीमका कषाय, कुटज (=कूट) का कपाय, पटोल (=परवल) का कपाय, पग्गव' का कपाय, नक्तमाल का कपाय और जो कोई दूसरी भी कपायकी दवाइयाँ हैं जो न खाद्य हैं न खानेके काम आती हैं, न भोज्य हैं, न भोजनके 16 ! १ कळवे फलवाली एक बूटी।