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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२६९

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, २१८ ] ३-महावग्ग [६१।११ "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ आटेकी चलनीकी।" सूक्ष्म (=चलनी) की आवश्यकता थी।- भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ कपळेकी चलनीकी।" 12 (१०) कच्चे मांस और कच्चे खुनकी दवा उस समय एक भिक्षुको अ-म नु प्य (-भूत-प्रेत) का रोग था। आचार्य उपाध्याय उसकी सेवा करते करते नीरोग नहीं कर सके । मूअर मारनेके स्थानपर जाकर उसने कच्चे मांसको खाया, कच्चे खून को पिया, और उसका वह अ-म नु प्य बाला रोग शान्त होगया। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ अ-मनुष्यवाले रोगमें कच्चे मांस और कच्चे खूनकी।" 13 (११) अंजन, अंजनदानी सलाई आदि १-उस समय एक भिक्षुको आँखका रोग था। उसे भिक्षु पकळकर पिशाव-पाखानेके लिये ले जाते थे। विहार घूमते वक्त भगवान्ने पकळकर उस भिक्षुको पिशाब-पाखानेके लिये ले जाये जाते देखा। देखकर जहाँ वे भिक्षु थे वहाँ गये । जाकर उन भिक्षुओंने यह पूछा- "भिक्षुओ! इस भिक्षुको क्या रोग है ?" "भन्ते ! इस आयुष्मान्को आँखका रोग है। इन्हें हम पकनकर पिशाव-पाखानेके लिये ले जाते हैं। तब भगवान्ने इसी संबंधमें० भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ अंजनकी (जैसे कि) --काला अंजन, रस-अंजन, स्रोत ( नदी की धारमें मिला) अंजन, गेरू, काजल।" 14 २-अंजनके साथ पीसनेके सामानकी आवश्यकता थी। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ चंदन, तगर, कालानुसारी, तालिस, भद्रमुक्ताकी।" IS ३-उस समय भिक्षु पीसे हुए अंजनको कटोरेमें रख छोळते थे, पुरवोंमें रख छोळते थे, और उसमें तिनका, धूल आदि पळ जाता था। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ अंजनदानीकी।" 16 ४-उस समय षड् व र्गी य भिक्षु सुनहली, रुपहली, नाना प्रकारकी अंजनदानियोंको धारण करते थे। लोग हैरान.. होते थे-(०) जैसे काम-भोगी गृहस्थ। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ! नाना प्रकारकी अंजनदानियोंको नहीं धारण करना चाहिये। जो धारण करे उने दुक्क ट का दोष हो। भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ हड्डीकी, (हाथी) दाँतकी, सींगकी, नरकटकी वाँसकी, काठकी, लाखकी, फलकी, ताँबे (लोह) की, शंखकी (अंजनदानियोंके रखनेकी)।" 17 ५--उस समय अंजन-दानियाँ खुली होती थीं जिससे तिनका, धूल पळ जाती । भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ ढक्कनकी।" 18 ६-ढवकन गिर जाते थे।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ सूतसे वाँधकर अंजनदानियोंके बाँधनेकी।" 19 ७-अंजनदानियाँ फट जाती थीं।- '० अनुमति देता हूँ सूतसे मढ़नेकी।" 20 ८-उस समय भिक्षु उँगलीसे आँजते थे और आँखें दुखती थीं। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ आँजनेकी सलाईकी।" 21 ९-उस समय प ड वर्गीय भिक्षु सोने-रूपेकी नाना प्रकारकी सलाइयाँ रखते थे। लोग हैरान.. होते थे। भगवान्से यह बात कही।-