६१।१४ ] धूम-बत्तीका विधान [ २१९ "भिक्षुओ! नाना प्रकारकी आँजनेकी सलाइयोंको नहीं धारण करना चाहिये । जो धारण करे उसे दुक्क ट का दोष हो। भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ हड्डीकी०, शंखकी० (सलाईकी)।" 22 १०-उस समय आँजनेकी सलाइयाँ ज़मीनपर गिर पळती थीं और रूखळ हो जाती थीं। भगवान् ने यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ सलाईदानीकी।" 23 ११-उस समय भिक्षु अंजनदानीको भी, आँजनेकी सलाईको भी हाथमें रखते थे। भगवान् से यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ अंजनदानीके बटुएका ।” 24 १२-उस समय कंधेका बटुआ (-अंसवट्टक) न था । भगवान्से यह बात कही "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ कंधेके बटुएकी, वाँधनेके सूतकी।" 25 (१२) सिरका तेल १--उस समय आयुष्मान् पि लि न्दि व च्छ को सिर-दर्द था। भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ सिरपर तेलकी।" 26 (१३) नम और नसकरनी आदि १-ठीक नहीं हुआ। भगवान्ने यह बात कही ।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ नन लेनेकी।" 27 २-नय गल जाती थी। भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ न म क र नी (=नाकमें नस डालनेकी नली) की।" 28 3--उस समय प ड व गी य भिक्षु मोने-रूपे नाना प्रकारकी नसकरनीको धारण करते थे। लोग हंगन...होते थे--० । भगवान्मे यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! नाना प्रकारची नसकरनीको नहीं धारण करना चाहिये । जो धारण करे उसे दुवकटवा दोप हो । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ शंख ० की।" ४ --नय बगवर नहीं पळती थी। भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ जोळी नसकरनी की।" 29 (१४) धूम-वत्तीका विधान १- (नगने भी) अच्छा न होता था। भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षओ ! अनुमति देता हूँ (दवाईके.) धुर्व पीनेकी ।" 30 ....उनी वनीको लीपकर पीते थे। उनने कंट जलता था भगवान्ने यह बात कही।- " मिओ ! अनुमति देता हूँ धूम ने त्रकी (=फोफी) ।"3I
नगम पड्दनींव निभु नाना प्रकार. नोने-रूपेवे. धूम्र ने त्र धारण करते थे। लोग
गल...। भगवान्ने यह बात कही।- नि ! माना काय अनेक नहीं धारण करना चाहिये. जो धारण करे उने दुवकटका निदेना ही धननेवनी।।2 2. लेकिन कहते और बबी चले जाने थे। भगवान्ने यह दात " For 32 Tag!:-