पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२७१

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२२० ] ३-महावग्ग [ ६२१ ६-एक ओर घिस जाते थे। ०- ". अनुमति देता हूँ दोहरी थैलीकी। ०। कन्धेके बटुएकी, वाँधनेके सूतकी।" 34 (१५ ) वातका तेल उस समय आयुष्मान् पि लि न्दि व च्छ को वातका रोग था । वैद्य तेल पकानेको कहते थे। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ तेल पकानेकी।" 35 (१६ ) दवामें मद्य मिलाना १- उस समय तेलमें शराब (=मद्य) डालनी थी। भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ तेल-पाकमें मद्य डालनेकी।" 36 २-उस समय प ड वर्गी य भिक्षु बहुत मद्य डालकर तेल पकाते थे और उन्हें पीकर मतवाले होते थे। भगवान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ! बहुत मद्य डाले हुए तेलको नहीं पीना चाहिये। जो पीये उसे धर्मानुसार (दंड) करना चाहिये। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, उस तेलके पीनेकी जिसमें मद्यका रंग, गन्ध और रस न जान पळे ।" 37 ३- उस समय भिक्षुओंके पास अधिक मद्य डालकर पकाया हुआ बहुतसा तेल था । तब उन भिक्षुओंको यह हुआ कि अधिक मद्य डालकर पकाये हुए तेलके साथ हमें क्या करना चाहिये। भग- वान्से यह बात कही।- “भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ अभ्यंजन (=मालिश करनेकी)।"38 (१७) तेलका वर्तन उस समय आयुष्मान् पि लि न्दि व च्छ के पास बहुतसा तेल पका था लेकिन तेलका बर्तन मौजूद न था। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ तीन तुम्बोंकी-लोह (=ताँवा) के तूंवेकी, काठके तूंवेकी, फलके तूंवेकी।" 39 ! ६२-स्वेदकर्म और चीर-फाळ आदि (१) स्वेदकम १-उस समय आयुष्मान् पि लि न्दि व च्छ के शरीरमें वात (का रोग) था। भगवान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ स्वे द क र्म (=पसीना निकालनेकी चिकित्सा) की।" 40 २-नहीं अच्छा होता था।-- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ सम्भा र-स्वे द की ।" 41 ३–नहीं अच्छा होता था।-- १ अनेक प्रकारके पसीना लानेवाले पत्तोंके वीच सोना ।