सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६९२१५ ] मलहम-पट्टी [ २२१ "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ म हा स्वेद की।" 42 (२) सोंगसे खून निकालना ४- नहीं अच्छा होता था।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ में गो द क की।" 43 ५-नहीं अच्छा होता था।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ उ द क को प्ट क की ।” 44 १-उस नमय आयुष्मान् पिलिन्दिवच्छको गठिया (=पर्ववात) का रोग था। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ खून निकालनेकी।" 45 २-नहीं अच्छा होता था।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ नींगने खून निकालनेकी।" 46 ( ३ ) पैरमें मालिस और दवा १-उस समय आयुष्मान् पि लिन्दि वच्छके पैर फटे थे। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ परमें मालिग करनेकी।" 47 २-नहीं अच्छा होता था।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ पैन्के लिये (दवा) बनानेकी।" 48 (४) चीर फाळ उस समय एक भिक्षुको फोळेवा गेग था। भगवान्ने यह बात कही।- " गिओ ! अनुमति देता हूँ ग स्त्र-कर्म (: चीर-फाळ) की।” 49 ( ५ ) मलहम-पट्टी १--काढ़ेव पानीकी ज़रूरत थी।- "भिक्षओ ! अनुमति देता हूँ काढ़ेवो पानीकी ।" so

- । भिक्षओ! अनुमति देता हूँ तिलकल्क (ग्वली) की।" I

3- । भिओ ! अनुमति देता हैं क व ळि का (मलहम का फाहा)की।" 52 --- । भिक्षशो! अनुमति देता हूँ घाव बांधनेत्री पट्टीकी।" 53 ५----पाव बजलाने थे। "शिक्षाओ ! अनुमति देता हूँ नरनाक लोधेने नहलानेकी।" 54 .....77 पन्हाना था। "मिक्षा : अगति देता हे धुंभान करनेत्री!"55 --समागमआता -- को अर्गन देता है बनाती जानीने काटनेत्री।" SG TIE 'पोमा भर नहा लोरर उसे गारसे नगर मिट्टी बालूने मंदकर वहाँ नाना प्रकारके पालेकाले पत्तोदो सिर में नेटला उनपर लेटकर पनीना निकालना (द)। लोकरीरमर पीना निकालना। रलकिरी है. उसनेटरीना निकालना।