पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२७३

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२२२ ] ३-महावग्ग [ ६२११ ८-घाव नहीं भरता था।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ घावके तेलकी।" 57 ९–तेल गिर जाता था। भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ विकासिक ( (=पतली पट्टी) सभी घावकी चिकित्सा की।"58 (६) सर्पचिकित्सा १-उस समय एक भिक्षुको सांपने काटा था। भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ चार म हा वि क टों के (बिला) देनेकी । जैसे कि पावाना, पेशाब, राख और मिट्टी।"59 २-तव भिक्षुओंको यह हुआ--बया (दूगरेके) देनेपर (लेना चाहिये) या स्वयं ले लेना चाहिये। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ कल्प्यकारक (= ग्रहणकरानेवाले) के होनेपर दिया लेनेकी और कल्प्यकारकके न होनेपर स्वयं लेकर सेवन करनेकी।" 60 (७) विप-चिकित्सा १-उस समय एक भिक्षुने विप खा लिया था। भगवान्मे यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ पाखाना पिलानेकी।" 61 २-तब भिक्षुओंको यह हुआ-क्या (दूसरेके) देनेपर (लेना चाहिये) या स्वयं लेना चाहिये। भगवान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, जैसा करनेसे वह ग्रहण करे वही ग्रहणका ढंग है। (काम होजानेपर) फिर नहीं ग्रहण कराना चाहिये।" 62 (८) घरदिन्नक रोगको चिकित्सा उस समय एक भिक्षुको घ र दिन क ' रोग था। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ हराई (सीता) की मिट्टी पिलानेकी।" 63 (९) भूत-चिकित्सा उस समय एक भिक्षुको दुष्ट ग्रह (=भूत) ने पकळा था। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ आ मि पो द क (=अनाज जलाकर बनाया सीरा) पिलाने- की ।" 64 (१०) पांडुरोग-चिकित्सा उस समय एक भिक्षुको पाण्डु रोग था। ०।-- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ (गो)-मूत्रकी हरॆ पिलानेकी।" 65 (११) जुलपित्ती आदिकी चिकित्सा १-० जुलपित्ती (=छ वि दोप) हो आई थी। ०।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ गंधकके लेप करनेकी।" 66 २-० शरीर सुन्न हो गया था। ०।- • अनुमति देता हूँ जुलाब पीनेकी।" 67 11 O १ स्वाभाविक अस्वाभाविक दोनों प्रकारका ।