पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२७५

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२२४ ] ३-महावग्ग [ER भूल कर देरके बाद याद करके एक सर्वार्थ क म हा मा त्य (=प्राइवेट सेक्रेटरी )को संबोधित किया- "भणे! जो मैंने आर्यके लिये आरामिक देनेको कहा था, क्या वह दे दिया गया ?" "नहीं देव ! आर्यको आरामिक (नहीं) दिया गया।" "भणे! कितना समय उसको हो गया ?" तब उस महामात्यने रातोंको गिनकर मगधराज रोनिय बिम्बि सा र से यह कहा- "देव! पांच सौ रातें।" "तो भणे! आर्यको पाँच सी आरामिक दो।" "अच्छा देव" ( कह ) उस महामात्यने मगधराज मेनिय बिम्बिसारको उत्तर दे आयुष्मान् पि लि न्दि व च्छ को पांच सौ आरामिक दिये, जिनका कि एक गाँव वस गया। जिसे कि (पीछे लोग) आ रा मि क ग्राम भी कहते थे, पि लि न्दि ग्राम भी कहते थे। (३) पिलिन्दि वच्छका चमत्कार उस समय आयुष्मान् पिलिन्दिवच्छ उस ग्रामके भिक्षाटक (=कु ल प ग) थे। तत्र आयुष्मान् पि लि न्दि व च्छ पूर्वाणके समय पहनकर पात्र-चीवर ले पिलि न्दि ग्राम में भिआके लिये प्रविष्ट हुए। उस उमय उस गाँवमें उत्सव था। लळके अलंकृत हो माला पहने खेलते थे। तब आयु- ष्मान् पि लि न्दि व च्छ पि लि न्दि गाँव में बिना ठहरे भिक्षाचार करते जहाँ एक आरामिकका घर था वहाँ पहुँचे। जाकर विछे आसनपर बैठे। उस समय उस आरामिककी लळकी दूसरे लळकोंको अलंकृत, मालाकृत देख रोती थी—'माला मुझे दो! अलंकार मुझे दो!' तब आयुष्मान् पि लि न्दि वच्छ ने आरामिककी स्त्रीसे कहा-"क्यों यह बच्ची रो रही है ?" "भन्ते ! यह लळकी दूसरे लळकोंको अलंकृत मालाकृत देखकर रो रही है 'माला मुझे दो ! अलंकार मुझे दो!', हम ग़रीवोंके पास कहाँ माला है, कहाँ अलंकार है ?" तव आयुष्मान् पिलिन्दिवच्छ एक तिनकेके टुकळेको उठाकर आरामिककी स्त्रीसे बोले- अच्छा ! तो इस तिनकेके टुकळेको लळकीके सिरपर रख दे।" तव उस आरामिककी स्त्रीने उस तिनकेके टुकळेको लेकर उस लळकीके सिरपर रख दिया, और वह सुवर्णमाला-वाली अभिरूपा-दर्शनीया–प्रासादिक हो गई। वैसी सुवर्णमाला तो राजाके अन्तःपुरमें भी नहीं थी। लोगोंने मगधराज सेनिय वि म्बि सा र से कहा- अमुक आरामिकके घर ऐसी सुवर्णमाला अभिरूपा–दर्शनीया–प्रासादिका है जैसी सुवर्णमाला कि देवके अन्तःपुरमें भी नहीं है । कहाँसे उस दरिद्रके (घरमें ऐसी हो सकती है), निस्संशय चोरीसे लाई गई है।" तव मगधराज सेनिय विम्बिसारने उस आरामिकके कुटुम्बको बाँध दिया। दूसरी वार भी आयु- प्मान् पि लि न्दि व च्छ पूर्वाह्नमें पहन पात्र-चीवर ले भिक्षाके लिये पि लि न्दि ग्राम में प्रविष्ट हुए। पि लि न्दि ग्राम में विना ठहरे भिक्षाचार करते जहाँ उस आरामिकका घर था वहाँ गये। जाकर पळो- "देव! । सियोंसे पूछा- "इस आरामिकका कुटुम्ब कहाँ चला गया?" "भन्ते! उस सुवर्ण मा ला के कारण राजाने बँधवा दिया।" तव आयुष्मान् पि लि न्दि व च्छ जहाँ मगधराज सेनिय विम्बिसारका घर था वहाँ गये। जाकर विछे आसनपर बैठे। तब मगधराज सेनिय विम्बिसार, जहाँ आयुष्मान् पि लि न्दि वच्छ थे, वहाँ गया।