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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२७६

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O 1 ६३५ ] गुळ खाने का विधान । २०५ जाकर...अभिवादनकर एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे मगधराज सेनिय विम्बिसारको आयुष्मान् पिलिन्दिवच्छने यह कहा- "महाराज ! क्यों (तुमने) उस आसमिकके कुटुम्बको बंधवाया है ?" "भन्ते ! उस आरामिकके घरमें ऐसी सुवर्ण मा ला ० थी जैसी हमारे अन्तःपुरमें भी नहीं निस्संगय चोरीने लाई गई है।" तब आयुप्मान पिलिन्दि व च्छ ने मगधगज सेनिय विम्बिसारका प्रासाद सोनेका हो जाय- यह संकल्प किया, और वह सान सुवर्णका हो गया ।- "महाराज ! यह बहुत सा सुवर्ण कहाँने (आया) ?" "जान गया, भन्ने! आर्यकी ऋद्धिके बलये वह आरामिक कुटुम्ब (वैसा हो गया था)।" और उस आरामिकके कुटुम्बको छुळवा दिया (४) भैपज्य सप्ताहभर रक्खे जासकते हैं लोग (यह देखकर) सन्तुष्ट, अत्यन्त प्रसन्न हुए कि आर्य पि लि न्दि व च्छ ने राजा सहित सारी परिपको दिव्यगवित-ऋद्धि-प्रानिहायं दिग्बलाया, और वे आयुप्मान् पिलिन्दिवच्छके पास घी, मक्खन, बाळ इन पाँच भैपज्योंको ले जाने लगे। साधारण तौरसे भी आयुष्मान् पिलिन्दिवच्छ पाँच भैपज्योंक पानेवाले थे । पाने पर परिषद् ( जमान) को दे देते थे, और उनकी परिपद् वटोरू हो गई। लकर वे चुडेमे भी, घन्में भी सम्बने थे। जल छ वके और थैलियोंमें भी भरकर जंगलोंमें भी टांग देते थे। और बह नितर बितर पले रहते थे और विहार चूहोंने भर गया था । लोग विहार में घूमते वक्त (वह भब) देव गन...होते थे। यह गावयपुत्रीय श्रमण कोप्टागान्बाले हो गये है जैसे कि मगधराज मेनिय बिम्बिगार। भिक्षुओंने उन मनुप्योय हैगन.. होनेको नुना और जो वह अल्पच्छ भिक्षु थे हैरान... होने थे--'बसे भिक्षु इस प्रकारचे बटोर होने के लिये चेतावंगे !' नब उन भिक्षुओंने भगवान् में यह बात कही।- "सचमुच भिक्षुओ ! भिक्षु म प्रकारचे बटोरू होनेके लिये चेताते हैं ?" "(ह) सचमुच भगवान् ! " • फटकार कन्वे धार्मिक कथा कह भगवानने भिक्षुओंको नंबोधित किया- "भिक्षओ ! जो वह गोगी भिक्षुओंके याने लायक भैपज्य है, जैसे कि घी, मकन्वन, मधु, तेल, मो. नं. अधिवाने अधिक सप्ताह भर पान रखकर नेवन करना चाहिये। इसका अतिक्रमण करनेपर मानवार (६६) करना चाहिये । नेल, मधु,

? , ? .. २-राजगृह (५) गुलबानेका विधान नमान पानी में दिनार बिहार विधा नजगह है. उधर चाम्किा का पान्हान ने गन्ने मुल बनाने वन उनमें आटा भी, .: मरा है। दिन है। मगहमे भोजन करने लायक . . पाद महिनी वाले थे। जो सत्रे श्रोता थे दह <