7 २२६ ] ३-महावग्ग [ ६३८ "यदि भिक्षुओ ! बाँधनेके लिये गुळमें आटा भी राख भी, डालते हैं तो वह भी तो गुळ ही कहा जाता है।" "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ इच्छानुसार गुळ खानेकी।" 74 (६) मूंगका विधान आयुष्मान् कं खा रे व त ने पकी भी मूंग उगी देखी । देखकर मूंग निषिद्ध हैं, पकी भी मूंग उत्पन्न होती हैं- (सोच) संदेह-युक्त हो (वे) अपनी परिपद् सहित मूंग नहीं खाते थे। जो उनके श्रोता ये वह भी मूंग नहीं खाते थे। भगवान्से यह बात कही।- "यदि भिक्षुओ ! पकी भी मूंगे उत्पन्न होती हैं तो अनुमति देता हूँ इच्छानुसार मूंग खानेकी ।" 75 (७) छाछका विधान उस समय एक भिक्षुको पेटमें वायगोलेकी बीमारी थी। उसने नमकीन सो वी र क (=छाछ) को पिया। वह वायगोलेका रोग शान्त हो गया। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ (इस) रोगमें सो बी र क (=छाछ) की, और नीरोगके लिये पानी मिलेको पेयके तौरपर सेवन करनेकी।" 76 (८) आरामके भीतर रखे, पकाये; और स्वयं पकायेका खाना निषिद्ध १–तव भगवान् क्रमशः चारिका करते जहाँ राजगृह था वहाँ पहुँचे और वहाँ भगवान् राज- गृह के वे णु व न क ल न्द क निवापमें विहार करते थे। उस समय भगवान्को पेटमें वायुकी पीळा हुई। तब आयुष्मान् आनन्दने-पहले भी भगवान्के पेटमें वायुकी पीळा होनेसे त्रिकटुक यवागू (=खिबळी) लाभ देती थी- (यह सोच) स्वयं तिल तंदुल और मूंगको मांगकर भीतर डालके (आरामके) भीतर स्वयं पकाकर भगवान्के पास उपस्थित किया- "भगवान् त्रिकटुक यवागूको पियें !" जानते हुए भी तथागत पूछते हैं ०१ । तब भगवान्ने आयुष्मान् आनंदको संबोधित किया- "आनन्द ! कहाँसे यह यवागू (आई) है ?" तव आयुष्मान् आनन्दने भगवान्से सव वात कह दी। बुद्ध भगवान्ने फटकारा- "आनंद ! अनुचित है, अयुक्त है, श्रमणके आचारके विरुद्ध है, अविहित है, अकरणीय है। कैसे आनंद तू ! इस प्रकारके वटोरूपनके लिये चेताता है ? आनन्द ! जो कुछ भीतर रखा गया है वह भी निषिद्ध है, जो कुछ भीतर पकाया गया है वह भी निपिद्ध है, जो स्वयं पका है वह भी निपिद्ध है। आनंद ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है ।" फटकारकर धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया।- "भिक्षुओ! (आरामके) भीतर रखे, भीतर पकाये और स्वयं पकायेको नहीं खाना चाहिये। जो खाये उसे दुक्कटका दोप हो।" 77 २-"भिक्षुओ ! भीतर रखे, भीतर पकाये, स्वयं पकायेका जो सेवन करे उसे तीनों दुक्क टों का दोष हो।"78 "यदि भिक्षुओ ! भीतर रखे, भीतर पके और दूसरे द्वारा पकायेका सेवन करे तो दो दुक्क टो- का दोप हो।" 79 'देखो पृष्ठ १०८।
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