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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२८५

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- २३४ ] ३-महावग्ग [ ६४३ ५-ग्रंधकविन्द ( ३ ) खिचळी और लड्डूका विधान १-तब भगवान् वा ग ण सी में उच्छानुसार विहारकर साढ़े बारह सौ भिक्षुओंक महान् भिक्षु-संघके साथ जिधर अंध क विद है उधर चारिकाके लिये चले । उस समय देहात (=जनपद) के लोग बहुत सा नमक, तेल, तंदुल और खानेकी चीजें गाळियोंगर रख,-'जब हमारी बारी आयेगी तब भोजन करायेंगे'—यह सोच बुद्ध सहित भिक्षु-गंधके पीछे पीछे चलते थे। और पांच सौ जूठा खाने- वाले भी पीछे-पीछे चल रहे थे। तब भगवान् क्रमगः त्रारिका करने जहां अंध क विद था वहाँ पहुंचे। तब एक ब्राह्मणको बारी न मिलनेसे ऐसा हुआ—'बुद्ध-सहित भिक्षु-संबके पीछे-पीछे (यह सोचकर) चलते हुए दो महीनेसे अधिक हो गए कि जब बारी मिलेगी तब भोजन कराऊँगा, और मुझे बारी नहीं मिल रही है। मैं अकेला हूँ; मेरा घरका बहुत सा काम नुकसान हो रहा है। क्यों न मैं भोजन पर- सनेको देखू । जो परसनेमें न हो उसको मैं हूँ।' तब ब्राह्मणने भोजन परसनेको देखते वक्त य वा गू खिचळी और लड्डू (=मयुगोलक)को न देखा। तब वह ब्राह्मण जहाँ आयुप्मान् आनंद थे वहाँ गया। जाकर आयुष्मान् आनंदसे यह बोला- “भो आनन्द ! मुझे वारी न मिलनेसे ऐसा हो-'बुद्ध-सहित संघके पीछेपीछे (यह सोचकर) चलते दो महीनेसे अधिक हो गये कि जब वारी मिलेगी तब भोजन कराऊँगा, और मुझे वारी नहीं मिल रही है। और मैं अकेला हूँ। मेरा घरका बहुत सा काम नुकसान हो रहा है। क्यों न मैं भोजन परसनेको देखू । जो परसनेमें न हो उसको मैं हूँ।' (फिर) भोजन परसनेको देखते वक्त यवागू और लड्डू मैंने नहीं देखा। सो भो आनन्द ! यदि मैं यवागू और लड्डूको तैयार कराऊँ तो क्या आप गौतम उसे स्वीकार करेंगे?" "तो ब्राह्मण ! मैं इसे भगवान्से पूछूगा ।" तव आयुष्मान् आनंदने भगवान्से यह बात कही। "तो आनंद ! (वह ब्राह्मण) तैयार करे।" "तो ब्राह्मण ! तैयार करो।" तब वह ब्राह्मण उस रातके बीत जानेपर बहुत सा यवागू और लड्डू तैयार करा भगवान्के पास ले गया।- "आप गौतम मेरे यवागू और लड्डूको स्वीकार करें।" तव भिक्षु आगा-पीछा करते नहीं स्वीकार करते थे। "भिक्षुओ! ग्रहण करो ! भोजन करो!" तव ब्राह्मण बुद्ध-सहित भिक्षु-संघको अपने हाथसे बहुतसे यवागू और लड्डूसे संतर्पित= सम्प्रवारित कर भगवान्के हाथ धो (खानेसे) हाथ हटा लेनेपर एक ओर बैठ गया। एक और बैठे उस ब्राह्मणसे भगवान्ने यह कहा- २-"ब्राह्मण खिचळी यवागूके यह दस गुण (आनृसंश) हैं-(१) यवागू देनेवाला आयुका दाता होता है; ( २ ) वर्ण (=रूप)का दाता होता है ; ( ३ ) सुखका दाता होता है; (४) बलका दाता होता है; (५) प्रतिभाका दाता होता है; (६) (उसकी दी खिचळी) पीनेपर क्षुधाको दूर करता है; (७) प्यासको दूर करता है; (८) वायुको अनुकूल करता है; (९) पेटको साफ करता है; (१०) न पचेको पचाता है । ब्राह्मण ! खिचळीके ये दस गुण हैं ।" जो संयमी, (और) दूसरेके-दिये-भोजन-करने-वालोंको- समयपर सत्कार पूर्वक यवागू (=खिचळी) देता है, !