६४४] निमंत्रणके स्थानसे भिन्न खिचळी निषिद्ध [ २३५ उसको दस बातें मिलती है। आयु, वर्ण, सुन्व, बल,- प्रतिभा उसको उत्पन्न होती है; फिर ( यवागू ) क्षुधा, पिपासा, (और) वायुको दूर करती है; पेटको गोधती है, खायेको पचाती है । बुद्धने इसे दवा बतलाया है । इसलिये सुख चाहनेवाले मनुष्यको, तथा दिव्य सुन्वको चाहनेवाले, या मनुष्योंमें मुन्दर भाग्यकी इच्छा रखनेवालेको, नित्य यवागूका दाता होना ठीक है। तब भगवान् उन ब्राह्मण (के दान )को इन गाथाओंने अनुमोदनकर आसनसे उठ चले गये। नब भगवान्ने इसी संबंधम इसी प्रकरण में धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको सम्बोधित किया- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ यवागू और मधुगोलक की ।"107 (2) निमंत्रण के स्थानसे भिन्न विचळी निषिद्ध लोगोंने गुना कि भगवान्ने भिक्षओंको यवागू और मधगोलककी अनुमति दी है तब वह म ही खाने के लायया यवाग और मधगोलकवो तैयार करते थे । भिक्ष नवे ही यवागू और मधु- गोलकको ज्यान में भोजनके समय मन नहीं खाने थे । उस समय एक धवाल नौजवान महामात्यने दूसरे दिनवः लिये बल-गहिन भिक्षु-गंधको निमंत्रित किया था। तब उन ध्रवाल नम्ण महामात्यको यह हुआ-----'वयो न मै साढ़े बारहमी भिक्षओके लिये नाले बामनी मानी मान्दियां नयार गऊँ, और एव एवः शिवः लिये एक एक गांगकी थाली प्रदान कर ?' नव जन धमाल नरण महामान्यने उस गनः दीन जानेपर उत्तम वाद्य-भोज्य और नाद दागहमी मानती थालियोको नैयार कर भगवान्को काटकी सूचना दी- "भने । भोजनका काल है, भात तैयार है।"
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