पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२९२

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६९४७ ] पाटलिग्राममें नगर-निर्माण [ २३९ "गृहपतियो! दुराचार, दुःशील (=दुराचारी) के ये पाँच दुष्परिणाम हैं । कौनसे पाँच ? गृहपतियो ! दुःशील, दुराचारी (मनुष्य) आलस्यके कारण अपनी भोग सम्पत्तिको बहुत हानि करता है; दुःशीलताका तथा दुराचारका यह पहला दुष्परिणाम है। "गृहपतियो! और फिर दुःशील, दुराचारीकी बदनामी होती है। दुःशीलता तथा दुराचारका यह दूसरा दुष्परिणाम है। और गृहपतियो! दुःशील, दुराचारी जिस किसी सभामें जाता है-चाहे वह क्षत्रियोंकी सभा हो, चाहे ब्राह्मणोंकी सभा हो, चाहे वैश्योंकी सभा हो, चाहे श्रमणोंकी सभा हो--उसमें अविशारद हो झेंपा हुआ जाता है। दुःशील, दुराचारका यह तीसरा दुष्परिणाम है। "गृहपतियो ! और फिर दुराचारी अत्यन्त मूढ़ताको प्राप्त हो मरता है। दुःशील दुराचारीका यह चौथा दुष्परिणाम है। "गृहपतियो ! दुःशील, दुराचारी शरीर छोळनेपर, मरनेपर नरकमें-दुर्गतिमें... निरय में... उत्पन्न होता है । दुःशील दुराचारीका यह पाँचवाँ दुष्परिणाम है। दुःशील दुराचारके ये पाँच दुष्परिणाम हैं। “गृहपतियो! सदाचारीके ये पाँच सुपरिणाम हैं। कौनसे पाँच ? "गृहपतियो! सदाचारी (= सदाचार-युक्त आदमी ) हिम्मती होनेके कारण बहुत सी धन- सम्पत्ति प्राप्त करता है। सदाचारी (=सदाचार युक्तका ) यह पहला सुपरिणाम है। "और फिर, गृहपतियो ! सदाचारी सदाचार युक्तकी नेकनामी होती है । सदाचारी सदाचार- युक्तका यह दूसरा सुपरिणाम है । "और फिर गृहपतियो! सदाचारी सदाचार-युक्त जिस जिस सभामें जाता है—चाहे क्षत्रियों की सभा हो, चाहे ब्राह्मणोंकी सभा हो, चाहे वैश्योंकी सभा हो, चाहे श्रमणोंकी सभा हो–उस सभामें वह विशारद हो निःसंकोच जाता है। सदाचारी-सदाचार-युक्तका यह तीसरा सुपरिणाम है । "और फिर गृहपतियो ! सदाचारी (=सदाचार-युक्त) मनुष्य विना मूढ़ताको प्राप्त हुए मरता है। सदाचारीके सदाचारका यह चौथा सुपरिणाम है । "और फिर गृहपतियो! सदाचारी-सदाचार-युक्त शरीर छोळनेपर, मरनेपर सुगति-स्वर्ग- लोवमें उत्पन्न होता है। सदाचारीके सदाचारका यह पाँचवाँ सुपरिणाम है । गृहपतियो! सदाचारीके सदाचारके यह पाँच सुपरिणाम हैं।" तब भगवान्ने वहुत रात तक...उपासकोंको धार्मिक-कथासे संदर्शित...समुत्तेजित कर... उद्योजित किया- "गृहपतियो ! रात वीत गई, जिसका तुम समय समझते हो ( वैसा करो)।" "अच्छा भन्ते !" ( कह )...पाटलिग्राम-वासी...उपासक. . .आसनसे उठकर भगवान्को अभिवादनकर प्रदक्षिणाकर चले गये । तव पाटलिग्रामिक उपासकोंके चले जानेके थोळीही देर बाद भगवान् शून्यागारमें चले गये । उस समय नु नी ध ( मुनोथ) और वर्प का र म ग ध के महामात्य पाट लि ग्राम में वज्जियों को रोकने के लिये नगर बनाते थे ।...। भगवान्ने रातके प्रत्यूष-समय ( =भिनसार )को उठकर आयुप्मान् आनन्दको आमंत्रित किया- "आनन्द ! पाटलिलाममें कौन नगर बना रहा है ?" "भन्ते ! मुनीम और वर्षकार मगध-महामात्य, वज्जियोंके रोकनेके लिये नगर बसा रहे हैं।" "गानन्द ! जैने अपस्निगद देवताओं के साथ मंत्रणा करके मगधके महामात्य मुनीथ, वर्ष-