पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३१२

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10 १ २ ७२।६ ] आदाय कठिन-उद्धार [ २५९ बनवाये उस भिक्षुको नि ष्ठा ना न्ति क नामक कठिन-उद्धार होता है आदाय पटक समाप्त (५) छ समादाय (१) भिक्षु कठिनके आस्थत हो जानेपर न बने चीवरहीको ठीकसे लेकर (=समादाय) चला जाता है । सीमाके बाहर जानेपर उसे ऐसा होता है-'यहीं चीवर वनवाऊँ और फिर न लौ,' और वह उस चीवरको वनवाये। उस भिक्षुको निष्ठानान्तिक नामक कठिन-उद्धार होता है। समादाय षट्क समाप्त (६) आदाय कठिन-उद्धार १-"भिक्षु कठिनके आस्थत हो जानेपर चीवरको लेकर (=आदाय) चला जाता है और सीमासे बाहर जानेपर उसको ऐसा होता है-'इस चीवरको यहीं बनवाऊँ और फिर न लौटूं।' वह उस चीवरको बनवाता है । उस भिक्षुको निष्ठानान्तिक कठिन-उद्धार होता है। भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चीवरको लेकर चल देता है और सीमाके बाहर जानेपर उसे ऐसा होता है-'न इस चीवरको वनवाऊँ, न फिर आऊँ ।' उस भिक्षुको स न्नि ष्ठा ना न्ति क कठिन-उद्धार होता है ।० चीवर को लेकर चल देता है और सीमाके बाहर जानेपर उसे ऐसा होता है—'यहीं इस चीवरको बनवाऊँ और फिर न आऊँ और वह उस चीवरको वनवाये । वनवाते वक्त ही उसका वह चीवर नष्ट हो जाय । उस भिक्षुको ना श ना न्ति क कठिन-उद्धार होता है । २-"भिक्षु कठिनके आस्थत हो जानेपर चीवरको लेकर (=आदाय)-फिर नहीं आऊँगा- (सोच) चल देता है । सीमाके वाहर जानेपर उसे ऐसा होता है-'यहीं इस चीवरको वनवाऊँ।' और वह उस चीवरको बनवाना है, उस भिक्षुको निष्ठानान्तिक कठिन-उद्धार होता है ।० चीवरको लेकर-'फिर न आऊँगा'-(सोच) चल देता है । सीमाके बाहर जानेपर उसको ऐसा होता है- 'इस चीवरको यहीं बनवाऊँ ।' उस भिक्षुको स नि ष्ठा ना न्ति क कठिन उद्धार होता है 10 चीवरको लेकर-फिर न लौटूंगा--(सोच ) चल देता है । सीमाके वाहर जानेपर उसे ऐसा होता है-'यहीं इस चीवरको बनवाऊँ'---और वह उस चीवरको वनवाता है । वनवाते समय ही वह चीवर नप्ट हो जाता है । उस भिक्षुको ना श ना न्ति क कठिन-उद्धार होता है । ३-"भिक्षु कठिनके आस्थत हो जानेपर चीवरको लेकर (आदाय), विना अधिष्ठान किये चल देता है उसको न यह होता है कि फिर आऊँगा और न यही होता है कि फिर न आऊँगा। मीमावे बाहर जानेपर उसे ऐसा होता है-- --० उस भिक्षुको निष्ठानान्तिक कठिन-उद्धार होता है । और न यही होता है कि फिर आऊँगा और न यही होता है कि फिर न आऊँगा० स नि प्ठा ना- न्ति क कठिन- उद्धार होता है । और न यही होता है कि फिर आऊँगा, और न यही होता है कि फिर न आऊँगा नाशनान्तिक कठिन-उद्धार होता है । -"भिक्षु कटिनके आस्थत होनेपर-फिर आऊँगा' (मोच) चीवरको लेकर चल देता है भीमाने बाहर जानेपर उसे ऐना होता है-'यहीं इस जीवरको दनवाऊँ और फिर न आऊँ'; उस जीवरको बनवाता है, उन भिक्षको नि प्टा ना नि क कठिन-उद्धार होता ।० स नि का ना न्ति क उपर बादाय सप्तकमे प्ररमणान्तिकको होट तथा 'दने चीवर'के स्थानपर 'न बने चादर पाटदे. साथ हराना चाहिये । आदाय पट्क की तरह यहाँ भी पाठ मिर्फ 'आदायकी जगह 'समादाय' पाट रखना साहिये।