पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३१३

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२६० ] ३-महावग्ग [ ७f२८ कठिन उद्धार होता है ।नाय ना न्ति क कठिन-उदार होता है। भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर 'फिर आऊँगा' (नोत्र ) चीवरको लेकर नल देता है । मीमाके बाहर जानेपर बह चीवरको बन- वाता है । चीवरके बन जानेपर वह सुनता है---'उग आवासमें कठिन उत्पन्न हुआ है;' उस भिक्षुको श्र व णा न्ति क कठिन-उद्धार होता है। भिक्षु कछिनके आम्थत हो जानेपर 'फिर आऊंगा' (सोच) चीवरको लेकर चला जाता है और गीमाके बाहर जा त्रीवरको बनवाना है। चीवर वन जानेपर 'लौटू लौटू' (कह) बाहर ही कठिन-उदार (के समय) को बिना देता है । उस भिक्षुको सी मा ति क्क न्ति क कठिन-उद्धार होता है । भिक्षु कठिनके आस्थत हो जानेपर-'फिर आऊंगा (सोच) चीवरको लेकर चल देता है, और मीमाके बाहर जा उस त्रीवरको बनवाता है । चीवर बन जानेपर 'लौ लौ,' (कह) कठिन-उदासी प्रतीक्षा करता है। उस भिक्षुको (दूसरे) भिक्षुओंके साथ कठिन-उद्धार होता है।" (७) समादाय कठिन-उद्धार १-"भिक्षु कठिनके आस्थत हो जानेपर चीवरको ठीकसे लेकर (=समादाय) बला जाता है०१। २-"भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चीवरको ठीकसे लेकर (समादाय) बला जाता है। ३-"भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चीवरको ठीकसे लेकर (=समादाय) चला जाता है०३ । -"भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चीवरको ठीकसे लेकर (- समादाय) चला जाता है। आदाय भाणवार समाप्त (८) अनाशापूर्वक कठिनोद्धार १-"भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चीवरकी आशासे चल देता है और सीमासे बाहर जा उस चीवरकी आशाका सेवन करता है । आशा न होनेपर पाता है और आशा होनेपर नहीं पाता। उसको ऐसा होता है—'यहीं इस चीवरको बनवाऊँ और फिर न लौटूं।' वह उस चीवरको बनवाता है । उस भिक्षुको नि ष्ठा नां ति क कठिन-उद्धार होता है। (२) भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चीवर की आशासे चल देता है और सीमासे बाहर जा उस चीवरकी आशाका सेवन करता है । आशा न होनेपर पाता है, और आशा होनेपर नहीं पाता । उसको ऐसा होता है-'न इस चीवरको बनवाऊँ न फिर लौटूं।' उस भिक्षुको स निष्ठा ना न्ति क कठिन-उद्धार होता है । (३) ० और आशा होनेपर नहीं पाता ।० ना श ना न्ति क कठिन-उद्धार होता है । (४) भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चीवरकी आशासे चल देता है । सीमासे बाहर जानेपर उसे ऐसा होता है-'यहीं इस चीवरकी आशाका सेवन करूँ और फिर न लौटूं।' वह उसी चीवरकी आशाका सेवन करता है (किन्तु) उसकी वह चीवराशा १ ऊपरके स्तंभ (६) १ जैसा ही पाठ है; सिर्फ 'आदायकी जगह 'समादाय' है । २ ऊपरके दूसरे स्तंभ (६)२ जैसा ही पाठ है; सिर्फ आदायका समादाय होजाता है । ३ ऊपरके तीसरे स्तंभ (६) ३की तरह 'आदाय'का 'समादाय' बदलकर पाठ है । ४ ऊपरके चौथे स्तंभ (६)४ की तरह पाठ है। सिर्फ 'आदाय'को 'समादाय' में परिवर्तन करदेना चाहिये।