पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३१४

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offre ] आशापूर्वक कठिनोद्धार [ २६१ टूट जाती है । उस भिक्षुको आ शो प च्छे दि क (=आशा टूट जाये जिसमें) कठिन-उद्धार होता है। २-"(१) भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चोवरकी आशासे 'लौटकर न आऊंगा' (यह सोच) चल देता है । सीमाके बाहर जा उस चीवरकी आशाका सेवन करता है । आशा न होनेपर पाता है, आगा होनेपर नहीं पाता है। उसको ऐसा होता है-'यहीं इस चीवरको वनवाऊँ'; और वह उस चीवरको बनवाता है । उस भिक्षुको निष्ठानान्तिक कठिनोद्धार होता है । (२)० 'लौटकर न आऊंगा'० स नि ष्ठा ना न्ति क कठिनोद्धार होता है । (३) ० 'लौटकर न आऊँगा'० नाश- ना न्ति क कठिनोद्धार होता है । (४) ० 'लौटकर न आऊँगा'• आ शो प च्छे दि क कठिनोद्धार होता है। ३-"(१) भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चीवरकी आशासे अधिष्ठान विनाही चलदेता है। उसको न यह होता है कि फिर लौटूंगा, न यही होता है कि फिर न लौटूंगा। उस सीमाके वाहर जा उस चीवरागाका सेवन करता है । आशा न होनेपर पाता है, आशा होनेपर नहीं पाता । उसको ऐसा होता है-'यहीं इस चीवरको बनवाऊँ और वह उस चीवरको बनवाता है। उस भक्षुक नि प्ठा ना न्ति क कठिनोद्धार होता है । (२) ० उसको न यह होता है कि फिर लौटूंगा, न यही होता है कि फिर न लौटूंगा ।० स निष्ठा ना न्ति क कठिनोद्धार होता है । (३). उसको न यह होता है कि फिर लौटूंगा, न यही होता है कि फिर न लौटूंगा ।० ना श ना न्ति क कठिनोद्धार होता है। (४) ० उसको न यह होता है कि फिर लौटूंगा, न यही होता है कि फिर न लौटूंगा।०० आ गो पच्छे दि क कटिनोद्धार होता है।" अनाशा द्वादशक समाप्त (९) आशापूर्वक कठिनोद्धार १- (१) भिक्षु कठिनके आस्थत हो जानेपर 'फिर लौटूंगा' (सोच) चीवरकी आशासे चल देता है । सीमासे बाहर जा उस चीवरकी आशाका सेवन करता है । आशा होनेपर पाता है न आगा होने पर नहीं पाता है । उसको ऐसा होता है-'यहीं इस चीवरको बनवाऊँ'; और वह वहीं उस चीवरको बनवाता है । उस भिक्षुको नि प्ठा नां ति क कठिनोद्धार होता है । (२)० 'फिर लौटूंगा' आगा होनेपर नहीं पाता है० स नि प्ठा नां ति क कठिनोद्धार होता है। (३). "फिर लोगा आगा होनेपर पाता है० ना श ना न्ति क कठिनोद्धार होता है । (४) • 'फिर लौटुंगा'० आगा होने पर पाता है आ शो पच्छे दि के कठिनोद्धार होता है । -- (१) भि कठिनके आस्थत होनेपर ‘फिर लौटूंगा' (मोच) चीवरकी आशासे चल देता है। भीमाने बाहर जाकर वह मृनता है-उस आवाममें कठिन उत्पन्न हुआ है । उसको ऐमा होता है.--'कि उस आवासमें कटिन उत्पन्न हुआ है इसलिये यहीं इन चीवरकी आगाका सेवन का । और यह उन चीवरकी आगाका नेवन करता है । आगा होनेपर पाता है, न आया होनेपर गारी पाता है । जमको ऐसा होता है-'यहीं इन चीदरको बनवाऊँ और वह उस चीवरको वन- वाता है । उग भिक्षुको निप्छा ना न्ति क. कठिनोद्धार होता है । (२)० मुनता है. आगा होनेपर लाता है मनिपटाना ति क.० । (३) ० नुनता है. आगा होने पर पाता है। नाग ना लि क० । (४) • दुगना ---जन आवागमें कठिन उत्पन्न हुआ है । उनको ऐना होता है-'कि उम आवास में बालिन मा हुा है हाल वही इन बीदकी आमाका नेवन करें और फिर लौटकर न गरजमकाया जाने मंदन करता है। उनकी वह चीवावी आगा टूट जाती है । मियो एक दिनानिसार होता है।