७१२।११ ] अप-विनय-पूर्वक कठिनोद्धार [ २६३ उत्पन्न होती है । ० आ शो पच्छे दि क कठिनोद्धार होता है । ३-"(१) भिक्षु कटिनके आस्थत होनेपर अधिष्ठानके विनाही किसी काम (= करणीय) से चला जाता है । उसको न यह होता है कि फिर आऊँगा और न यही होता है कि फिर न आऊँगा। सीमाके बाहर जानेपर उसे चीवरकी आशा उत्पन्न होती है । वह उस चीवरकी आशाका सेवन करता है । न आशा होनेपर पाता है, आशा होनेपर नहीं पाता । उसको ऐसा होता है-'यहीं इस चीवरको वनाऊँ और फिर न लौटूं।' वह उस चीवरको बनाता है । उस भिक्षुका नि प्ठा ना न्ति क कठिनोद्धार होता है । (२) ० करणीयसे अधिष्ठान विनाही चला जाता है । उसको न यह होता है कि फिर आऊँगा, और न यही होता है कि फिर न आऊँगा । सीमाके बाहर जानेपर उसे चीवरकी आशा उत्पन्न होती है । वह उस चीवरकी आशाको सेवन करता है । न आशा होनेपर पाता है, आशा होने- पर नहीं पाता। उसको ऐसा होता है-'न इस चीवरको बनवाऊँगा न फिर लौटूंगा' । उस भिक्षुका स नि ष्ठा नां ति क कठिनोद्धार होता है । (३) ०१ आशा होनेपर नहीं पाता । उसको ऐसा होता है-'यहीं इस चीवरको बनवाऊँ और फिर न लौटू । ० ना श ना न्ति क कठिन-उद्धार होता है । (४) ० सीमासे बाहर जानेपर उसे चीवरकी आशा उत्पन्न होती है ० आशोपच्छेदिक कठिनोद्धार होता करणीय द्वादशक समाप्त (११) अप-विनय-पूर्वक कठिनोद्धार १-~-"(१) भिक्षु कठिनके आस्थत होनेपर चीवरके (अपने हिस्सेको)अप वि न य (-हक़ छोळना) करके दिशा में जानेके लिये चल देता। दिशामें चले जानेपर भिक्षु उससे पूछते हैं-'आवुस ! तुमने वर्षावास कहाँ किया, और कहाँ है तुम्हारा चीवरका हिस्सा ?' वह ऐसा कहता है-~-'अमुक आवासमें मंने वर्षावास किया और वहीं मेरा चीवरका हिस्सा है।' वह ऐसा कहते हैं-'जाओ आवुस ! उस चीवरको ले आओ ! तुम्हारे लिये हम यहाँ चीवर बनायेंगे ।' वह उस आवासमें जाकर भिक्षुओंसे पूछता है-~~-'आवुस ! कहाँ है मेरा चीवरका हिस्सा ?' वह ऐसा कहते हैं-आवुस ! यह है तुम्हारा चीवरका हिस्सा । (अब) तुम कहाँ जाओगे ? वह ऐसा बोलता है-'मैं अमुक आवासमें जाऊँगा । वहीं भिक्षु मेरे लिये चीवर बनायेंगे।' वे ऐसा बोलते हैं-'नहीं आवुस ! मत जाओ। हम तुम्हारे लिये यहीं चीवर बना देंगे ।' उसको ऐसा होता है-'यहीं इस चीवरको बनवाऊँ और (वहाँ) न लौटू ।' वह उस चीवरको वनवाता है । उस भिक्षुको नि प्ठा नां ति क कठिन-उद्धार होता है । (२) ० 'नहीं आदुस ! मत जाओ । हम तुम्हारे लिये यहीं चीवर बना देंगे।' उसको ऐसा होता है-०१ सन्नि प्ठा नां ति क कटिनोद्धार होता है। (३) 'नहीं आवुस ! मत जाओ। हम तुम्हारे लिये यही चीवर बना देंगे।' उसको ऐसा होता है ०१ नाश ना न्ति क कठिनोद्धार होता है। - (१) ० अप वि न य करके दिशामें जानेके लिये चल देता । 'नहीं आवम! मत जाओ। हम तुम्हारे लिये वही चीवर बना देंगे।' उनको ऐसा होता है-'यहीं इस चीवनको बनवाऊँ और (कहाँ) न लाई।' और वह उन चीवरको बनवाता है। उन भिक्षुको नि प्ठा ना न्ति क कटिनोद्धार होता है । (:) • वह उन आदान में जाकर भिक्षुओंने पूछना है-'आबुनो ! कहाँ है, मेग चीवरका भाग : ऐना दोलने हे-आकुन ! यह है तेरा चीवरका भाग ।' वह उम चीवरको लेकर उस मागमें जाता है। ले गाम्नमें भिक्षु लोग पूछते हैं-'आदुन कहाँ जाओगे ?' वह ऐमा कहता
.. 'रेलो ९१६ () पृष्ट २५९ ।