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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३१८

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? ७१३।१] कठिनके विघ्न और अविघ्न [ २६५ १---"भिक्षुओ ! कैसे आवासका विघ्न होता है ? जव भिक्षुओ ! एक भिक्षु उस आवासमें वास करता है या फिर लौटूंगा यह इच्छा रख चल देता है; भिक्षुओ ! इस प्रकार आवासका विघ्न होता है । भिक्षुओ! किस प्रकार चीवरका विघ्न होता है ? -भिक्षुओ ! जब भिक्षुका चीवर नहीं बना होता या बेठीकसे बना होता है, या चीवरकी आशा टूट नहीं गई रहती; इस प्रकार भिक्षुग्रो ! चीवरका विघ्न होता है । भिक्षुओ ! ये दो कठिनके विघ्न हैं। २--"भिक्षुओ ! कौनसे दो कठिनके अविघ्न हैं ?-आवासका अविघ्न और चीवरका अविघ्न । भिक्षुओ ! कैसे आवासका अविघ्न होता है ? --जब भिक्षुओ ! भिक्षु फिर न लौहँगा (सोच) इच्छा- रहित हो उस आवासको त्यागकर वमनकर छोळकर चल देता है। इस प्रकार भिक्षुओ ! आवासका अविघ्न होता है । भिक्षुओ ! कैसे चीवरसे अविघ्न होता है ?--जब भिक्षुओ ! भिक्षुका चीवर वन गया होता है, या नष्ट (=गुम) हो गया होता है, या विनष्ट (=खतम) होगया होता है, या जल गया होता है, या चीवरकी आशा टूट गई होती है; इस प्रकार भिक्षुओ ! चीवरका अविघ्न होता है । भिक्षुओ ! यह दो कठिन के अविघ्न हैं।" कठिनक्खन्धकसमाप्त ॥७॥ !