पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३१९

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८-चीवर-स्कंधक ६१-विहित चीवर और उनके भेद १-राजगृह (१) जीवक-चरित उस समय वुद्ध भगवान् राजगृहमें वेणुवन कलन्दक-निबापमें विहार करते थे। उस समय वै शा ली ऋद्ध=स्फीत (=समृद्धिशाली), बहुत जनों मनुप्योंसे आकीर्ण, सुभिक्षा (=अन्नपान-संपन्न) थी। उसमें ७७७७ प्रासाद, ७७७७ कूटागार, ७७७७ आराम, ७७७७ पुष्क- रिणियाँ थीं। गणिका अम्ब पा ली अभिरूप दर्शनीय प्रासादिक, परमल्पवती, नाच, गीत और वाद्यमें चतुर थी।...चाहनेवाले मनुप्योंके पास पचास कापण रातपर जाया करती थी। उससे वैशाली और भी प्रसन्न शोभित थी। तव राजगृहका नै ग म किसी कामसे वैशाली गया। राज गृह के नैगमने वैशालीको देखा-ऋद्ध० । राजगृहका नै ग म वैशालीमें उस कामको खतम कर, फिर राजगृह लौट गया। लौटकर जहाँ राजा मागध श्रेणिक वि म्वि सा र था, वहाँ गया। जाकर राजा० विम्बिसारसे बोला- "देव ! वैशाली ऋद्ध-स्फीत० और० भी शोभित है। अच्छा हो देव ! हम भी गणिका रक्खें ?" "तो भणे ! वैसी कुमारी ढूंढो, जिसको तुम गणिका रख सको।" उस समय राजगृहमें सा ल व ती नामक कुमारी अभिरूप दर्शनीय० थी। तब राजगृहके नैगमने सा ल व ती कुमारीको गणिका खड़ी की। सालवती गणिका थोळे कालमें ही नाच, गीत और वाद्यमें चतुर हो गई। चाहनेवाले मनुष्योंके पास सौ (कार्पापण) में रातभर जाया करती थी। तब वह गणिका अ- चिरमें ही गर्भवती हो गई। तव सालवती गणिकाको यह हुआ-गर्भिणी स्त्री पुरुपोंको नापसंद (=अ- मनाप) होती है, यदि मुझे कोई जानेगा-सालवती गणिका गर्भिणी है, तो मेरा सब सत्कार चला जायेगा। क्यों न मैं बीमार बन जाऊँ । तब सालवती गणिकाने दौवारिक (=दर्यान)को आज्ञा दी:- "भणे ! दौवारिक !! कोई पुरुप आवे और मुझे पूछे, तो कह देना-चीमार है।" "अच्छा आयें ! (=अय्ये ! )" उस दौवारिकने सालवती गणिकासे कहा। "सालवती गणिकाने उस गर्भके परिपक्व होनेपर एक पुत्र जना। तब सालवती....ने दासी- को हुकुम दिया :- "हन्द ! जे! इस बच्चेको कचरेके सूपमें रखकर कूड़ेके ऊपर छोळ आ।" दासी सालवती गणिकाको “अच्छा आयें !" कह, उस बच्चेको कचरेके सूपमें रख, ले जाकर कूळेके ऊपर रख आई। उस समय अभ य - रा ज कु मा र ने सकालमें ही राजाकी हाजिरीको जाते (समय), घिरे उस बच्चेको देखा। देखकर मनुष्योंसे पूछा :-- "भणे ! (=रे! ) यह कौओंसे घिरा क्या है।" "देव ! वच्चा है।" कौओंसे २६६ ] [CS12