पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३२४

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1 ८६१११ ] प्रद्योतकी चिकित्सा [ २७१ था। तव वनारसके श्रेष्ठीको यह हुआ-'मेरे पुत्रको वैसा रोग है, जिससे जाउर भी० । क्यों न मैं राज- गृ ह जाकर अपने पुत्रकी चिकित्साके लिये, राजासे जीवक वैद्यको माँगूं।' तव वनारसके श्रेष्ठीने राज- गृह जाकर...राजा...विविसारसे यह कहा- "देव ! मेरे पुत्रको वैसा रोग है । अच्छा हो यदि देव मेरे पुत्रकी चिकित्साके लिये वैद्य को आज्ञा तब राजा...विविसारने जीवक...को आज्ञा दी- "भणे जीवक ! वनारस जाओ, और बनारसके श्रेष्ठीके पुत्रकी चिकित्सा करो।" "अच्छा देव !" कह....वनारस जाकर, जहाँ वनारसके श्रेष्ठीका पुत्र था, वहाँ गया । जाकर...श्रेष्ठी-पुत्रके विकारको पहिचान, लोगोंको हटाकर, कनात घेरवा, खंभोंको बँधवा, भार्या को सामने कर, पेटके चमळेको फाळ, आंतकी गाँठको निकाल, भार्याको दिखलाया- "देखो अपने स्वामीका रोग, इसीसे जाउर पीना भी अच्छी तरह नहीं पचता था।" गाँठको सुलझाकर अंतळियोंको (भीतर) डालकर, पेटके चमळेको सीकर, लेप लगा दिया। वनारसके श्रेष्ठीका पुत्र थोळी ही देर में निरोग हो गया। बनारसके श्रेष्ठीने 'मेरा पुत्र निरोग कर दिया' (सोच) जीवक कौमार-भृत्यको सोलह हज़ार दिया। तव जीवक...उन सोलह हज़ारको ले फिर राज- गृह लौट गया। उस समय राजा प्र द्यो त को पांडु-रोगकी बीमारी थी। वहुतसे वळे वळे दिगंत-विस्यात वैद्य आवर निरोग न कर सके; बहुतसा हिरण्य (= अशर्फी) लेकर चले गये। तब राजा प्रद्योतने राजा मागध श्रेणिक विविसारके पास दूत भेजा- "मुझे देव! ऐसा रोग है, अच्छा हो यदि देव जीवक-वैद्यकी आज्ञा दें, कि वह मेरी चिकित्सा करे।" तब राजा...बिबिसारने जीवक...को हुकुम दिया- "जाओ भणे जीवव! उज्जैन (= उज्जैनी) जाकर, राजा प्रद्योतकी चिकित्सा करो।" "अच्छा देव!". . .वह. . .जीवक...उज्जैन जाकर, जहाँ राजा प्रद्योत (=पज्जोत) था, वहाँ गया । जाकार राजा प्रद्योतके विकारको पहिचानकर...वोला- "देव! घी पकाता हूँ, उसे देव पीयें।" "मणे जीवय! वस, घीके विना (और) जिससे तुम निरोग कर सको, उसे करो। घीसे मुझे घृणा-प्रतिय लता है।" तव जीवय.. को यह हुआ-'इस राजाका रोग ऐसा है, कि पीके बिना आराम नहीं किया जा सकता; क्यों न मैं घीको कपाप-वर्ण, कपाय-गंध, कपाय-रम पकाऊँ।' तद जीवक...ने नाना औषधोसे कपाय-वर्ण, कपाय-गंध, कपाय-रत घी पकाया । तव जीवक...को यह हुआ~-'राजाको भी पीकर पचते वक्त उवांत होता जान पळेगा। यह राजा चंड (क्रोधी) है, मुझे मरवा न डाले। क्यों न मै पहिलेही ठीक कर रवव । तव जीवर....जाकर गजा प्रद्योतने दोला-- "देव! हमलोग वैद्य हैं; वैने वैसे (विशेप) महूर्नमें मूल उखाळने हैं, ऑपथ मंग्रह करते हैं । पाहो, यदि देव वाह्न-मालाओं और नगर-हागेपर आना देदें कि जीवक जिन दाह्नने चाहे, उम सानो जाये; जिस द्वारने चाहे, उस हारने जावे; जिस समय चाहे, उस समय जावे; जिम समय हारे, उन समय (नगर) भीतर आये।" तर मप्रदोत ने बालागारों और हागेपर आहा देवी-'दिल दाह्नने० ।' उस ममय सामसोनी नलिका नामद हमिनी (दिनमें) बान पोजन (चलने वाली थी। तब जीवकः .. ...