सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८४१२ ] चीवरोंकी संख्या [ २७९ 11 ४.-उस समय चीवर घना रंग जाता था ०-~- • अनुमति देता हूँ पानी में डालनेकी ।" 36 ५-चीवर रूखा हो जाता था। 0- अनुमति देता हूँ हाथसे कूटनेको।" 37 ६४-चीवरोंकी कटाई, संख्या और मरम्मत (१) काटकर सिले (=छिन्नक) चीवरका विधान उस समय भिक्षु कापाय (वस्त्र)को विना काटे ही धारण करते थे। २-दक्षिणागिरि तव भगवान् रा ज गृह में इच्छानुसार विहारकर जिधर दक्षिणा गिरि है उधर चारिकाके लिये चले गये। भगवान्ने म ग ध के खेतोंको मेंळ बँधा, कतार वधा, मर्यादा वैधा, और चौमेंळ-बँधा देखा। देखकर आयुष्मान् आनंदको संबोधित किया- "आनंद ! देख रहा है तू मगधके खेतोंको मेंळ बँधा, कतार वैधा, मर्यादा वधा, और चौमेंळ-बंधा?" "हाँ भन्ते ! "आनन्द ! क्या तू भिक्षुओंके लिये ऐसे चीवर बना सकता है ?" "सकता हूँ भगवान् ३-राजगृह तब भगवान दक्षिणा गिरि में इच्छानुसार विहारकर फिर राज गृह चले आये। तब आयु- प्मान् आनन्दने बहुतसे भिक्षुओंके चीवरोंको बनाकर, जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये। जाकर भगवान्से 11 यह बोले- "भन्ते ! भगवान् मेरे बनाये चीवरोंको देखें।" तब भगवान्ने इसी संबंधर्म, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! आनन्द पंडित है, आनन्द महाप्रज्ञ है जो कि उसने मेरे संक्षेपसे कहेका विस्तारसे अर्थ समझ लिया। वयारी भी बनाई, आधी क्यारी भी बनाई, मंडल भी बनाया, अर्थ मंडल भी बनाया विवर्त (=मंडल और अर्ध मंडल दोनों मिलकर) भी बनाया, अनुविवर्त भी बनाया, प्रै वे य क (= गर्दनवी जगह चीवरको मजबूत करनेकी दोहरी पट्टी) भी बनाया, जांघे य क (=पिंडलीकी जगह चीवरको मजबूत कर लीः दोहरी पट्टी) वा हु वन्त (=बाँकी जगहका चीवरका भाग) भी बनाया । लिन का (= काटकर मिला चीवर), शस्त्र - रुक्ष (मौटा-झोटा) और श्रमणोंके योग्य होगा और प्रत्यपी (:-चुरानेवालों) के कामका न होगा। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, संघाटी, उत्तरासंघ और अन्तरवासकको छिन्न क (=काट कर लिला) बनानेकी।"58 वैशाली (२) चीवरोंको संख्या मग सह में विकार विहार कर जिधर वैशाली है उपर चले गये। भगवान्ने नागारनिको चीयरले लदे देना ।नियान भी चीववी पोटली, -कई बापटनी का दबा रहे थे। देवकर भगवान्शी