- २८० ] ३-महावग्ग [ ८४ यह हुआ-'यह मोघ पुरुष बहुत जल्दी नीवर बटोरू बनने लगे। अच्छा हो मैं चीवरकी सीमा बाँच दू, मर्यादा स्थापित कर दूं। तब भगवान् क्रमगः नारिका करते जहाँ वैशाली है वहाँ पहुँचे । वहाँ भगवान् वैशालीमें गो त म क चैत्य में विहार करते थे। उस समय भगवान् हेमन्तमें अन्त राप्टक की रातोंमें हिम-पातके समय रातको खुली जगहमें एक नीवर ले बैठे। भगवान्को सर्दी न मालूम हुई। प्रयम याम (=चार घंटा) के समाप्त होनेपर भगवान्को सर्दी मालूम हुई। भगवान्ने दूसरा चीवर ओढ़ लिया और भगवान्को सर्दी न मालूम हुई। बिनले याम के बीत जाने पर भगवान्को सर्दी मालूम हुई तब भगवान्ने तीसरे चीवरको पहन लिया और भगवान्को सर्दी न मालूम हुई । अन्तिम यामके बीत जाने पर अरुणके उगते रात्रिके न न्दि मुखी होने (=पी फटने) के वक्त सर्दी मालूम हुई। तब भगवान्ने चौथा चीवर ओढ़ लिया । तब भगवान्को सर्दी न मालूम हुई। तब भगवान्को यह हुआ। जो कोई शी तालु (=जिनको सर्दी ज्यादा लगती है), सर्दीसे डरनेवाला कुल-पुत्र इस धर्ममें प्रबजित हुए हैं वह भी तीन चीवरसे गुजारा कर सकते हैं। अच्छा हो में भिक्षुओंके लिये चीवरखी सीमा बाँधू , मर्यादा स्थापित कहें, तीन चीवरोंकी अनुमति दूं।' तब भगवान्ने इसी प्रकरणमें, इसी संबंधमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! रा ज गृह और वैशाली के मार्गमें आते वक्त मैंने बहुतसे भिक्षुओंको चीवरसे लदे देखा ० (मैंने सोचा) अच्छा हो मैं भिक्षुओंके लिये तीन चीवरोंकी अनुमति हूँ। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ-(१) दोहरी सं घाटी, (२) एकहरे उत्त रा संघ (३) इकहरे अंत र वा स क; तीन चीवरोंकी।" 39 (३) फालतू चीवरोंके बारेमें नियम १-उस समय षड् वर्गीय भिक्षु-भगवान्ने तीन चीवरोंकी अनुमति दी है- (सोच), दूसरे तीन चीवरोंसे गाँवमें जाते थे, दूसरे ही तीन चीवरोंसे आराममें रहते थे और दूसरे ही तीन चीवरोंसे नहाने जाते थे। जो वह भिक्षु अल्पेच्छ थे..., वह हैरान...होते थे—'कैसे पड्वर्गीय भिक्षु फालतू चीवर धारण करते हैं।' तब उन लोगोंने भगवान्से यह बात कही । भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया।- "भिक्षुओ! फालतू चीवर नहीं धारण करना चाहिये । जो धारण करे उसको धर्मानुसार (दंड) करना चाहिये।" 40 २-उस समय आयुष्मान् आ नं द को (एक) फालतू चीवर मिला था। आयुष्मान् आनंद उस चीवरको आयुष्मान् सा रि पुत्र को देना चाहते थे; और आयुष्मान् सारिपुत्र उस समय सा के त में विहार करते थे। तब आयुष्मान् आनंदको यह हुआ—'भगवान्ने विधान किया है कि फालतू चीवर नहीं धारण करना चाहिये और यह मुझे फालतू चीवर मिला है। मैं इस चीवरको आयुष्मान् सारिपुत्रको देना चाहता हूँ, और आयुष्मान् सा रि पुत्र साकेतमें विहार कर रहे हैं। मुझे कैसे करना चाहिये ?' तव आयुष्मान् आनंदने यह बात भगवान्से कही।- "आनंद ! कब तक सा रि पुत्र आयेगा ?" "नवें या दसवें दिन भगवान् ।" तव भगवान्ने इसी संबंधमें, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ दस दिन तक फालतू चीवरको रख छोळने की।" 41 ३-उस समय भिक्षुओंको फालतू चीवर मिलता था। तब भिक्षुओंको यह हुआ—'हमें इस 1 'माघकी अन्तिम चार और फागुनको आरम्भिक चार रातें।
पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३३३
दिखावट