पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३३४

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! ८६४१५ ] विशाखाको वर [ २८१ फालतू चीवरको क्या करना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ फालतू चीवरके विकल्प करनेकी।"42 ५ -वाराणसी (४) पेद रफू करना तब भगवान् वैशाली में इच्छानुसार विहारकर जिधर वा राण सी है उधर चारिकाके लिये चल पळे । क्रमशः चारिका करते जहाँ वाराणसी है वहाँ पहुँचे। वहाँ भगवान् वाराणसीके ऋपि प त न मृग दा व में विहार करते थे। उस समय एक भिक्षुके अन्तरवासकमें छेद हो गया था। तब उस भिक्षुको यह हुआ-'भगवान्ने तीन चीवरोंका विधान किया है; दोहरी संघा टी, इकहरे उत्त रा सं घ और इकहरे अन्त र वा स क की। और इस मेरे अन्तरवासकमें छेद हो गया है। क्यों न मैं पेवंद लगाऊँ जिससे कि (छेदके) चारों तरफ़ दोहरा हो जाये और वीचमें इकहरा?' तब उस भिक्षुने पेवंद लगाया । आश्रममें घूमते वक्त भगवान्ने उस भिक्षुको पेवंद लगाते देखा। देखकर जहाँ वह भिक्षु था वहाँ गये। जाकर उससे बोले- "भिक्षु ! तू क्या कर रहा है ?" "भगवान् ! पेवंद लगा रहा हूँ।" "साधु ! साधु ! भिक्षु, तू ठीक ही पेवंद लगा रहा है।" तब भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, नये या नये जमे कपळेकी दोहरी मं घाटी, इकहरे उत्तरासंघ और बहरे अन्तरवासववी; ऋतु खाये कपळेकी चौहरी, संघाटी, दोहरे उत्तरासंघ और दोहरे अन्तर- वासकवी ; पां मु कू ल (=फेंके चीथळे) होनेपर यथेच्छ । दूकानके फेंके चीथळेको खोजना चाहिये । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ पेवन्द, रफ़्, डॉळे, टाँके, और दृढ़ी-कर्मकी।" 43 -श्रावस्ती (५) विशाखाको वर तद भगवान् वा ग ण नी में इच्छानुसार विहारकर जिधर श्रा व ली है उधर चले। फिर क्रमगः विहार करते जहाँ श्रादरती है वहाँ पहुँचे। वहाँ भगवान् श्रावस्ती अ ना थपि डि क के आराम जेतवनमें विहार करने थे। तव विशाखा म गा र मा ना जहाँ भगवान् थे वहाँ गई । जाकर भगवान्को अभिवादन कार एवः ओर बैठी । एक ओर बैठी विगा वा -मृगार माताको भगवान्ने धार्मिक कथा दाग ममुत्तेजित, नप्रापित किया । तब दिवाना मृगार माता भगवान्की धार्मिक कथा द्वारा नमुनेजित, सम्प्रहर्पित तो भगवान्ने यह बोली- "भाने ! भगवान् भिक्षु-गंधर्व नाय कलका मेग भोजन म्बीकार करें।" भगवान्ने मानने स्वीकार किया। तब विवादा मृगार मा ना भगवान्की स्वीकृति जान भगवान्दो भिवादनकर प्रदक्षिणापर चली गई। मनमा जम गये बीतनेर वा तु ही पिक महामेव बग्मने लगा। नद भगवान्नं भिक्षुओं- 'वन में काम नहा है की ही त्रागीमान बन्न न्हा है। भिक्षुओ ! • दीपवाली मार्ग पर जोपही नम दमदा है।