पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३३५

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३-महावग [ ८४ वाम गरीरको नहलायो! यह अन्तिम ना तु पिक महामेव है।" "अच्छा भन्ने !" (मह) उन भिओने भगवान्को उत्तर दे, चीवरको फेंक वर्षामें गरीरको नहलाने लगे। तब विमा या मृ गारमा ता ने उनम पाना-भोज्य तैयार करा दासीको आना दी- "जा रे ! आराममें जाकर कालकी सुनना दे--(भोजनका) काल है । भन्ने भान तैयार है।" "अच्छा आयें !" (कह) उस बानीने विगा वा मृ गा र मा ता को उनर दे आगममें जा देखा कि भिक्षु चीवर फेंक गरीन्को वर्गाम नहला रहे हैं। देशकर-आग़ममें भिक्षु नहीं हैं । आ जी व क शरीरको वर्षा खिला रहे है--(नोन) जहां विना नाम गा मा ता थी वहां गई । जाकर यह कहा- "आयें आराममें भिक्षु नहीं है। आ जी व क गरीयो व पिला रहे हैं।" तब पंडिता चतुग मेधाविनी होनेने बिगाना मृ गा र मा ना को यह हुआ- "निस्मंगय आर्य लोग नीवर फेंककर गरीन्को वर्षा बिला रहे हैं, और इस मूर्खाने मान लिया कि आराममें भिक्षु नहीं है और आ जी व क गर्गलो वर्षा बिला रहे हैं । फिर दासीको आज्ञा दी- "जारे ! आराममें जाकर समयकी गनना दे--० ।" तब वे भिक्षु गरीरको ठंडाकर शान्त गरीग्वाले हो त्रीवरोंको ले अपने अपने विहार में चले गये। तब वह दामी आगममें जा भिक्षुओंको न देन--आगममें भिक्षु नहीं हैं. आगम चुना है- (सोच) जहाँ वि शा खा मृ गा र मा ता थी वहाँ गई। जाकर वि मा ना मृ गा र मा ता से यह कहा- "आर्ये! आराममें भिक्षु नहीं है । आराम मूना है।" तव पंडिता, चतुरा, मेधाविनी होनेमे वि या ग्वा मृ गा र मा ता को यह हुआ- 'निस्संशय आर्य लोग शरीरको ठंढाकर, शान्तकाय हो त्रीवरको लेकर अपने अपने बिहारने चले गये होंगे; और इस मूर्खाने समझा कि आराममें भिक्षु नहीं हैं, आराम सूना है ।' और फिर दासीको भेजा-'जारे! ०' तव भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! पात्र-चीवर तैयार कर लो! भोजनका समय है।" अच्छा भन्ते ! (कह) उन भिक्षुओंने भगवान्को उत्तर दिया- तव भगवान् पूर्वाह्ण समय पहिनकर, पात्र-चीवर ले, जैसे बलवान् पुरुप (अप्रयास) समेटी वाँहको पसारे और पसारी वाँहको समेटे वैसे ही जे त व न में अन्तर्धान हो वि शा खा मृ गा र माता कोठेपर प्रकट हुए और भिक्षु-संघके साथ बिछे आसनपर बैठे। तव विशाखा मृ गा र मा ता-'आश्चर्य रे ! अद्भुत रे ! तथागतकी दिव्यशक्ति-महानुभावताको जोकि जाँघ भर, कमर भर, बाढ़के वर्तमान होनेपर भी एक भिक्षुका भी पैर, या चीवर न भीगा! --सोच हर्पित-उदग्र हो बुद्ध सहित भिक्षु संघको उत्तम खाद्य-भोज्य द्वारा संतर्पित कर भगवान्के भोजन कर पात्रसे हाथ हटा लेनेपर एक और बैठ गई। (६) वर्षिकशाटो आदिका विधान एक ओर बैठी वि शा खा मृ गा र मा ता ने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! मैं भगवान्से आठ वर माँगती हूँ।" "विशाखे! तथागत वरोंसे परे हो गये हैं।" "भन्ते ! जो विहित हैं, जो निर्दोप हैं।" १ उस समयके नंगे साधुओंका एक संप्रदाय ।