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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३३८

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८९५३ ] कुछ वस्त्रोंका विधान [ २८५ स्वप्नदोष नहीं होता। आनन्द ! जो वह पृथ क् ज न (=सांसारिक पुरुष) काम भोगोंमें वीतराग नहीं हैं उनको भी स्वप्नदोप नहीं होता। यह संभव नहीं आनन्द ! इसकी जगह नहीं कि अर्हतोंको स्वप्न- दोप हो।" तव भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया-- "भिक्षुओ ! आज मंने आनंदको पीछे ले आश्रम घूमते वक्त आसन-वासनको अशुचि-पूर्ण देखा ० अर्हतोंको स्वप्नदोप हो।" "भिक्षुओ ! स्मृति सं प्र जन्य रहित हो निद्रा लेनेके यह पाँच दोप है--(१) दुःखके साथ मोता है; (२) दुःखके साथ जागता है; (३) बुरे स्वप्नको देखता है; (४) देवता रक्षा नहीं करते; (५) स्वप्नदोष होता है। --भिक्षुओ ! स्मृ ति संप्र जन्य रहित हो निद्रा लेनेके यह पाँच दोप हैं। "भिक्षुओ ! स्मृति सं प्रजन्य युक्त हो निद्रा लेनेके यह पाँच गुण हैं--(१) सुखसे सोता है; (२) मुन्वने जागता है; (३) बुरे स्वप्न नहीं देखता; (४) देवता रक्षा करते हैं; (५) स्वप्नदोप नहीं होता। भिक्षुओ ! स्मृति में प्र ज न्य युक्त हो निद्रा लेनेके यह पाँच गुण हैं । "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ कायकी रक्षा करते, चीवरकी रक्षा करते, आसन-वासनकी रक्षा करते बैठनेकी।" 45 ६५–कुछ और वस्त्रोंका विधान तथा चीवरों के लिये नियम ( १ ) विछौनेकी चादर उन समय बिछौना बहुत छोटा होता था और वह सारे आसनको नहीं ढकता था। भगवान्से यह बात कही।-~ "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ प्रत्य न्न र ण =आसनकी नादर) जितना बळा चाहे उतना बका बनानेकी।".46 (२) रोगीको कोपीन