पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३४०

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८६५।११ ] एक चीवरसे गाँवमें नहीं जाना [ २८७ (८) चीवरको हल्का. नरम आदि करनेका ढंग १-उस समय आयुष्मान् म हा का श्य प का पांयुकूलसे बना (चीवर) भारी था। भग- वान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ मूत्र रु २५ करनेकी।" 53 २-(चीवरका) कान लटका था। भगवान्ने यह बात कही।-- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ लटके कानको निकालनेकी।" 54 ३ --सूत बिबरे रहते थे। भगवान्ने यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, हवाके रुग्व ऊपर चढ़ा लेनेकी।" 55 ४-उस समय संघाटीमे पात्र टूट जाते थे। भगवान्ने यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ अप्टपदक कन्नेकी ।" 56 (९) कपळा कम होनेपर तोनां चोवरको छिन्नक नहीं बनाना १-उस समय एक भिक्षुके लिये तीनों चीवर बनाते वक्त सारे छिन्नक (=टुकळेसिये) करके नहीं पूरे होते थे। भगवान्ये यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, दो चीवरके छिन्त्रक होनेकी और एकके अछिन्नक होनेकी।" 57 २-दो छिन्नक और एक अछिन्नक भी नहीं पूरे पळते थे। भगवान्ने यह बात कही। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ दो अछिन्नक और एक छिन्नककी।" 58

-दो अछिन्नक और एक छिन्नका भी नहीं पूरा पळता था। भगवान्मे यह बात कही।--

"भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ. अव्वा धिक (-जोळ ) को भी लगानेकी । किन्तु भिक्षुओ यभी (चीवर) को अछिन्नक नही धारण करना चाहिये । जो धारण करे उसे दुवकटका दोप हो।"59 (१०) अधिक वस्त्र माता-पिताका दिया जा सकता है उस समय एक भिक्षुवो बहुत चीवर (=कपळा, वन्त्र) मिला था। वह उमे माता-पिताको दना चाहता था। भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ ! माता-पिनावं देनेको मैं क्या कहूँ। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ माता-पिताको देनेवी । भिओ ! श्रद्धाने दियेको नहीं फेंकना चाहिये। जो फे.के उनको दुवकटका दोष हो।" 60 (१) एक चोवरस गांव में नहीं जाना उगममय एक भिक्ष अन्ध द न में चीवनको डालकर उनके पास जो एक और (चीवर) था गावं गाय गाव, शिक्षाव दिय गया। चोर उन चीदरको त्रुग ले गया और वह भिक्ष वगव चीवर- वाला, गो. नीदर वाला हो गया। भिक्षुओंने पूछा--"आदन ! तु क्यों बगद त्रीवन्वाला, मैले चीबर "गाना 'मदन बीकर डालकर मिक्षा निये नया । बोगेंने उन बीबको चुग नीलामो चीदवाला है। भगवान ने यह बात कही।- -- 'सीमर की मन्दिोंडा मोहरा करना होता है। नवर.क्ष करने में कपटेको परदे काय को मिला वह काम लिया जाना है।