पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३४१

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२८८ ] ३-महावग्ग [ CSRL "भिक्षुओ ! एकही (और) वने नीवरने गांवमें नहीं जाना चाहिये। जो जाये उसको दुवकट का दोष हो। 61 (१२) चीयरोग किसी एकको छोल रखने के कारण उस समय आयमान् आ न न्द (पहने जीवनको छोल) और दूसरे त्रीवरके न रहते गांवमें भिक्षाके लिये गये। मिओंने आयमान् आनन्दगे यह कहा- "क्यों आवुन ! आनन्द. भगवान्ने एकही नीवर ओर रहने गांवमें जानेको मना किया है न. आयुस ! तुम क्यों एगही नीवर ओर रहते गांव में प्रविष्ट हुए।" "आवुनो! गह है। भगवान्ने एकही नीवर ओर रहते गांवमें जानेको मना किया है, किन्तु मैं न रहनेपर प्रविष्ट हुआ है। भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ ! इन पांन कारणोंगे मं घाटी गल छोळी जा सकती है-(१) रोगी होता है; (२) वर्षाका लक्षण मालूम होता है; (३) गा नदी पार गया होता है; (४) या किवाळने रक्षित विहार होता है; (५) या कठि न आन्थत हो गया होता है। भिक्षुओ ! घाटी छोळ रखनेके ये चार कारण (ठीक) हैं। भिक्षुओ! इन पान कारणोंगे उत्तरा सं घ रख छोळा जा सकता है- (१) रोगी होता है; (२) वर्षाका लक्षण मालूम होता है; (५) या क ठि न आस्थत हो गया होता है; । भिक्षुओ! इन पाँच कारणोंसे अन्त र वा स क रख छोळा जा सकता है- (१) रोगी होता है; (२) वर्षाका लक्षण मालूम होता है० ; (५) या कठिन आस्थत हो गया होता है; व पि क सा टि का को रख छोळा जा सकता है-(१) रोगी होता है; (२) सीमाके बाहर गया हो; (३) नदीके पार गया हो; (४) या किवाळमे रक्षित विहार हो; (५) वर्षिक साटिका न बनी या वेठीक बनी हो; भिक्षुओ ! इन पांच कारणोंसे वपिक साटिका रख छोळी जा सकती है। 62 ० । भिक्षुओ! इन पाँच कारणों इन सांपिक ( ६६-चीवरोंका बँटवारा (१) संघके लिये दिये चीवरपर अधिकार १-उस समय एक भिक्षुने अकेलेही वर्षावास किया। वहाँ लोगोंने-'संघको देते हैं-(कह) चीवर दिये। तब उस भिक्षुको यह हुआ—'भगवान्ने विधान किया है, कमसे कम चार व्यक्तिके संघका, और मैं अकेला हूँ। इन लोगोंने--'संघको देते हैं' (कह) चीवर दिये हैं। क्यों न संघके) चीवरोंको श्रा व स्ती ले चलूँ ?' तब उस भिक्षुने उन चीवरोंको ले श्रावस्ती जा भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षु ! जबतक कठिन न मिल जाय वह चीवर तेरेही हैं। भिक्षुओ! यदि भिक्षुने अकेला वर्षावास किया है और मनुष्योंने-'संघको देते हैं--(कह) चीवर दिये हैं। तो भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ उन चीवरोंके उसीके होनेकी; जब तक कि कठिन नहीं मिल जाता।" 63 २-उस समय एक भिक्षुने एक ऋतुभर अकेले वास किया। वहाँ मनुष्योंने-'संघको देते हैं'-(कह) चीवर दिया। ०१ "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ संघके सामने वाँटनेकी।" 64 'ऊपरहीकी तरह यहाँ भी दुहराना चाहिये ।