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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३४२

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! (1913) चीवरोंका वटवारा [ २८९ ३-"यदि भिक्षुओ! एक भिक्षुने एक ऋतुभर अकेले वास किया। वहाँ मनुष्योंने-'संघको देते हैं'-(कह) चीवर दिया हो; तो- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ उस भिक्षुको-'यह चीवर मेरे हैं'-(कह) उन चीवरोंको इस्तेमाल करनेकी। यदि भिक्षुओ! उन चीवरोंको इस्तेमाल करनेसे पहिले दूसरा भिक्षु आ जाय तो बराबरका हिस्सा देना चाहिये। यदि भिक्षुओ! उन भिक्षुओंके चीवर वाँटते समय किन्तु कुश पड़नेसे पहिले दूसरा भिक्षु आजाय तो उपेभी वरावरका भाग देना चाहिये। भिक्षुओ! यदि उन भिक्षुओंके चीवर बांटने समय और कुशके डाल देनेपर दूसरा भिक्षु आवे तो इच्छा न होनेपर भाग न देना चाहिये।" 65 ४-उस समय आयुष्मान् ऋपि दा स और आयुप्मान् ऋ पि भ द्र दो भाई स्थविर वर्षावास कर एक गाँवके आवासमें गये। लोगोंने-देरने स्थविर लोग आये हैं--(कह) चीवर सहित भोजन तैयार किया। आवासके रहनेवाले भिक्षुओंने स्थविरोंसे पूछा- "भन्ते ! स्थविरोंके कारण यह मांघिक चीवर मिले हैं। स्थविर (इनमें) भाग लेंगे?" स्थविरोंने यह कहा -"आवुसो ! जैसा कि हम भगवान्के उपदेशे धर्मको जानते हैं (उससे) जबाव क टि न न मिले तबतक तुम्हारेही वे चीवर होते हैं।" उस समय तीन भिक्षु राजगृहमें वर्षावाय करते थे। वहाँ लोग–'संघको देते हैं'-(कह) चीवन देने थे। तब उन भिक्षुओंको यह हुआ--'भगवान्ने कमसे कम चार व्यक्तिका संघ कहा है, और हम नीन ही जने है । यह लोग--'संघको देते हैं'-(कह) चीवर दे रहे हैं। हमें कैसे करना चाहिये?' ५--उस समय ' आयुष्मान् नी ल वा नी आयुष्मान् साँ ण वा मी; आयुप्मान् गोप क, आयु- प्मान् मृगु, और आयुष्मान् पन्नियः यंदा न--बहुतने स्थविर पाट लि पु त्र के कुक्कु टा रा म में बिहार करते थे। तब उन भिक्षुओंने पाटलिपुत्र जा उन स्थविरोंमे पूछा । स्थविरोंने यह कहा-- "आवुनो ! जैसा कि हम भगवान्य उपदेगे धर्मको जानते है, जब तक क ठि न न मिले तुम्हारे ही वे होते है।" (२) वर्षावासके भिन्न स्थानके चीवरमें भाग नहीं उस समय आयमान् उ प नंद गावपुत्र श्रावस्ती में वर्षावासकर एक. ग्रामके आवासमें गये। वहां नीवर बांटने के लिये भिक्षु जमा हुए थे। उन्होंने यह कहा- "आवन ! यह नाघिक चीवर बांटे जा रहे हैं। आप इनमें हिम्मा लेंगे?" "ता आवन गंगा"-- ( काह) वहांगे बीबर-भाग ले दम आवानमें गये। वहाँ (भी) चीवर नालिय भिक्ष जगा हा थे। हीने यह कहा--"आबुन ! यह मांधिक चीवर बांटे जा रहे हैं। जाप (न) ना लेंगे।"