पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३४३

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२९० ] ३-महावन्ग [ ८१ "आवुस ! यह गांधिक नीवर बांटे जा रहे हैं। आर (इनमें) हिस्सा लेंगे ?" "हाँ आवत ! गा--(कह) वहांने नीवर-भाग ले बना भारी चीवरका गट्ठर बाँय किर श्रा व रती लौट आये। भिक्षुओंने गह नहा- "आयुस उपनंद ! तुम बल पुगणवान् हो। तुम्हें बहुत नीवर मिला है।" "आयुसो! कहाँने में गुणवान् है ? आयुनो ! मैं गहाँ श्रावस्ती वर्षावासकर एक ग्रामके आवासमें गया वहां भी चीवर-भाग लिया। इस प्रकार मुझे बहुत चीवर मिल गया।" "क्या आवुस उपनंद ! दूसरी जगह वर्षावास कालो तुमने दूसरी जगह त्रीवर-भाग लिया?" "हाँ आबुस !" तब वह जो भिक्षु अल्लेच्छ. . . वह हैगान. . होते थे-"कमे आयुष्मान् उ प न द वाश्ययुत्र दूसरी जगह वर्णावासकर दूसरी जगह नीवर-भाग लेंगे !!" भगवान्मे यह बात कही।- "सचमुच उपनंद ! तूने दूसरी जगह बवासकार, दूसरी जगह चीवर-भाग लिया ?" "(हाँ) सचमुच भगवान् !" बुद्ध भगवान्ने फटकारा- "कैसे तू मोघ-पुरुप ! दूसरी जगह वर्षावासकर दूसरी जगह चीवर-भाग लेगा ! मोयपुरुष ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है।" फटकारकर भगवान्ने धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! दूसरी जगह वर्षावास करके, दूसरी जगह चीवर-भाग नहीं लेना चाहिये। जो ले उसको दुक्कटका दोप हो।" 66 (३) दो स्थानमें वर्षावास करनेपर हिस्सेका अाधा ही आधा उस समय आयुष्मान् उ प नं द शाक्यपुत्रने-इस प्रकार मुझे बहुत चीवर मिलेगा- (सोच) अकेले दो आवासोंमें वर्षावास किया। तव उन भिक्षुओंको यह हुआ-'कैसे आयुष्मान उ प नं द शाक्यपुत्रको चीवरमें हिस्सा देना चाहिये ?' -भगवान्ते यह बात कही। "भिक्षुओ! दे दो मोघ पुरुपको एक भाग। "यदि भिक्षुओ ! भिक्षु-'इस प्रकार मुझे बहुत चीवर मिलेगा'-सोच अकेले दो आवासों में वर्षावास करे और यदि एक जगह आधा और दूसरी जगह आधा वसे तो एक जगहसे आधा और दूसरी जगहसे आधा चीवर-भाग देना चाहिये। या जहाँ बहुत अधिक वसा हो वहाँसे चीवर-भाग देना चाहिये।" 67 ६७-रोगीकी सेवा और मृतकका दायभागी (१) रोगोकी सेवाका भार उस समय एक भिक्षुको पेट विगळनेकी बीमारी थी। वह अपने मल-मूत्रमें पळा था। तब भगवान आयुष्मान् आनंदको पीछे लिये आश्रम घूमते हुए जहाँ उस भिक्षुका विहार था वहाँ पहुँचे। भगवान्ने उस भिक्षुको अपने मल-मूत्रमें पळा देखा। देखकर जहाँ वह भिक्षु था वहाँ गये। जाकर उस भिक्षुसे यह बोले- "भिक्षु ! तुझे क्या रोग है ?" "पेटमें विकार है, भगवान्।"