पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३४८

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८९९।२ ] चीवरोंका दान [ २९५ ५-"यदि भिक्षुओ! वर्षावासकर चीवर मिलनेपर (किन्तु उसके) वाँटनेसे पहले भिक्षु आश्रम छोळ चला जाता है, मर जाता है० अन्तिम वस्तुका दोपी माननेवाला होता है तो संघ स्वामी है।" 82 ६-"यदि० बाँटनेले पहिले उन्मत्त०, बुरी धारणाके न छोळनेसे उत्क्षिप्तक माननेवाला होता है तो योग्य ग्राहक होनेपर देना चाहिये।" 83 ७-"यदि० बांटनेसे पहले पंडक० दोनोंके लिंगोंवाला माननेवाला होता है तो संघ मालिक है।" 84 FE-चीवर-दान और चीवर-वाहनके नियम (१) संघ-भेद होनेपर चीवरोंके सनके अनुसार बँटवारा १-"यदि भिक्षुओ ! भिक्षुओंके वर्षावास करलेनेपर चीवर मिलनेसे पहले संघमें फुट हो जाती है और लोग-संघको देते हैं-(कह) एक पक्षको पानी देते हैं और एक पक्षको चीवर देते हैं तो वह संघका ही है।" 85 २-"यदि भिक्षुओ ! भिक्षुओंके वर्षावास कर लेनेपर संघमें फूट हो जाती है और लोग- संघको देते है - (कह) एक पक्षको (दक्षिणाका) पानी देते हैं और उसी पक्षको चीवर देते हैं, तो वह संघका ही है ।" 86 ३-"यदि० चीवरको मिलनेने पहिलेही नंघमें फूट हो जाती है और लोग-इस पक्षको देते है.-(वह) एव पक्षको पानी देते हैं और दूसरे पक्षको चीवर देते हैं तो वह पक्षका ही है ।" 87 ४-“यदि० संघमें पूट हो जाती है और लोग-(इम) पक्षको देते हैं--(कह) एक पक्षको पानी देते है और उसी पक्षको चीवर देते है तो वह पक्षका ही है।" 88 ५-"यदि भिक्षुओ ! भिक्षुओंके वर्षावास करलेनेपर चीवके मिल जानेपर (किन्तु) बाँटनेसे पहिल, संघमें पट होती है तो सबको बराबर बरावर बांटना चाहिये ।" 89 (२) दूसरे के लिये दिवं चोवरोंका चोवर-बाहक द्वारा उपयोग करनेमें नियम --उग गगय आयमान् रे व त ने एक निभुके हाधने-'यह चीवर म्यविरको देना'- (प.) भाग्मान् ना मित्र के पान एक बीदर नेजा। तब उन निकुने गन्लेमें आयुष्मान् रे व न से (मागनगर पा जाने वः) दिग्दासने उस बीबरको (अपने लिये) ले दिया। जब आग्रुप्मान् रे व त ने आगान नामित मिलने पर पटा-मन्ते । नेपावि लिये चीबर भेजा था, मिला वह चीवर?" "सावन । मेरो जस जीदको नहीं देखा ।" नभायमान रेन भिक्षने पह कहा-