पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३५५

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तुम, निश ३०० ] ३-महावग्ग [S "मोघपुरुयो! अयोग्य है० श्रमणोंके आचारके विरुद्ध है०, कैसे मोबपुरुपो ! शुद्ध भिक्षुको, अपराध विना, कारण विना उत्क्षिप्त करोगे ! मोधपुल्यो, न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है।" फटकारकर धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! निर्दोष गुद्ध भिक्षुको अपराध बिना, कारण बिना, उत्क्षिप्त नहीं करना चाहिये। जो उत्क्षिप्त करे उगे दुवक ट का दोप हो।" I तब वह भिक्षु आसनने उठ, उत्तरामंघको एक कंधेपर रख भगवान्के चरणोंमें शिरसे पळ भग- वान्से यह वोले- "भन्ते ! हमारा अपराध है, बालककी तरह, मूडकी नग्ह, अनकी तन्ह हमने अपराध किया जो कि हमने निर्दोप शुद्ध भिक्षुको अपगधी बिना, कारण बिना उत्क्षिप्त किया। मो भन्ने! भगवान हमारे अपराधको, अपराधके तौरपर ग्रहण करें, भविष्यमें संयमके लिये ।" "सो भिक्षुओ! तुमने अपराध किया० कारण बिना उत्क्षिप्त किया। चूंकि भिक्षुओ! तुम अपराधको अपराधके तौरपर देख धर्मानुसार प्रतिकार करते हो (इसलिये) हम तुम्हारे उस (अप- राध क्षमापन) को ग्रहण करते हैं। भिक्षुओ! आर्य विनयमें यह वृद्धि (की बात) है जो कि (मनुष्य) अपराधको अपराधके तौरपर देख धर्मानुसार उसका प्रतिकार करता है; और भविष्यमें संयम करने- वाला होता है।" (२) अकर्मों (-नियम-विरुद्ध फैसलों) के भेद उस समय च म्पा में इस प्रकारके कर्म (=दंड) करते थे-अधर्मसे वर्ग (=कुछ व्यक्तियों का) कर्म करते थे, अधर्मसे समग्र कर्म करते थे, धर्मसे वर्ग कर्म करते थे, धर्म जैसेसे वर्ग कर्म करते थे, धर्म जैसेसे समग्र कर्म करते थे। अकेला एकको भी उत्क्षि प्त करता था। अकेला दोको भी उत्क्षिप्त करता था। अकेला बहुतोंको भी उत्क्षिप्त करता था। अकेला संघको भी उत्क्षिप्त करता था। दो भी एकको दोको०, बहुतोंको०, ० संघको उत्क्षिप्त करते थे। बहुतसे भी एकको० दोको०, बहुतोंको०, संघको उत्क्षिप्त करते थे। (एक) संघ (दूसरे) संघको भी उत्क्षिप्त करता था। जो अल्पेच्छ...भिक्षु थे वह हैरान.. होते थे—'कैसे चम्पा में भिक्षु ऐसे कर्म करते हैं!-० उत्क्षिप्त करता है।' तब उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही "सचमुच भिक्षुओ! च म्पा में ?" “(हाँ) सचमुच भगवान् ।” वुद्ध भगवान्ने फटकारा- "भिक्षुओ ! अयुक्त है० (एक) संघ (दूसरे) संघको भी उत्क्षिप्त करे ! न यह भिक्षुओ! अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है। फटकारकर भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! (१) अधर्मसे वर्ग कर्म अकर्म है। उसे नहीं करना चाहिये। (२) धर्मने समान कर्म अकर्म है उसे नहीं करना चाहिये। धर्मसे वर्ग कर्म अकर्म है उसे नहीं करना चाहिये। (४) धर्म जैनेने वर्ग कर्म अकर्म है० । (५) ०धर्म जैसेसे समग्र कर्म अकर्म है । (६) •एकको उत्क्षिप्त करे अकर्म है । ०। (७) संघ संघको भी उत्क्षिप्त करे अकर्म है; इसे नहीं करना चाहिये। 2 (३) कर्मके भेद “भिक्षुओ! यह चार कर्म (= दंड) हैं--(१) अधर्मसे वर्ग कर्म , (२) अधर्मसे समग्राम, (३) धर्मसे वर्ग कर्म, (४) धर्मसे समग्र कर्म । भिक्षुओ! इनमें जो यह अधर्मसे वर्ग कर्म है वह अधर्मनारे 1 • (एक) संघ (दूसरे) संघको भी 17