पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३५६

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. ९४११६ ] अधर्म कर्मके भेद [ ३०१ कारण, वर्गताके कारण, कोप्य (= हटाने लायक) और अयोग्य है। भिक्षुओ! ऐसे कर्मको नहीं करना चाहिये। मैंने इस प्रकारके कर्मकी अनुमति नहीं दी। भिक्षुओ! जो यह अधर्मसे समग्र कर्म है भिक्षुओ! यह कर्म अधर्मताके कारण कोप्य, अयोग्य है । भिक्षुओ! जो यह धर्मसे वर्ग कर्म है वह कर्म धर्मताके कारण कोप्य, अयोग्य है। ० १ ० भिक्षुओ! जो यह धर्मसे समग्रकर्म है यह धर्मताके कारण, सामग्रताके कारण, अकोप्य, और योग्य है । भिक्षुओ! ऐसे कर्मको करना चाहिये। ऐसे कर्मकी मैंने अनुमति दी है। इसलिये भिक्षुओ! सीखना चाहिये कि जो यह धर्मसे समग्र कर्म हैं उसे करूँगा।" (४) अकोंके भेद उस समय पड्वर्गीय भिक्षु ऐसे कर्म ( दंड) करते थे--(१) अधर्मसे वर्ग कर्म करते थे; (२) अधर्मसे समग्र कर्म०; (३) धर्मसे वर्ग कर्म०; (४) धर्म जैसेसे वर्गकर्म०; (५) धर्म जैसेसे समग्र कर्म०; (६) सू च ना' विना भी अनु श्रा व ण' युक्त कर्म करते थे; (७) अनु श्रा व ण विनाभी सूचना-युक्त कर्म करते थे; (८) सू च ना विनाभी, अनु श्रा व ण विनाभी कर्म करते थे; (९) धर्म (बुद्धोपदेग) के विरुद्ध भी कर्म करते थे; (१०) वि न य (-भिक्षु नियम) के विरुद्ध भी कर्म करते थे; (११) बुद्धशासनके विरुद्ध भी कर्म करते थे; (१२) प टि कुट्ठ क ट (-दूसरेके निन्दा- बाक्यके जवाबमें किया गया) धर्म-विरुद्ध कोप्य और अयोग्य कर्म करते थे। जो वह अल्पेच्छ ....भिक्षु थे वह हैरान. . होतेथे-कैसे पड्वर्गीय भिक्षु ऐसे कर्म करेंगे।' तब उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही। “सचमुच भिक्षुओ ! पड्वर्गीय भिक्षु ऐसे कर्म करते हैं…?" “(हाँ) सचमुच भगवान् !" • फटकारकर धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! (१) अधर्मसे वर्ग कर्म अकर्म है; उसे नहीं करना चाहिये । (२) अधर्मसे समग्र कर्म० । (३) धर्मसे वर्ग कर्म० । (४) धर्म जैसेसे वर्ग कर्म० । (५) धर्म जैसेसे समग्र कर्म० । (६) ज्ञप्ति बिना, अ न था व ण युक्त कर्म०। (७) अनुश्रावण विना ज्ञप्तियुक्त कर्म० । (८) अनुश्रावण बिना भी और ज्ञप्ति बिना भी कर्म० । (९) धर्मसे विरुद्ध कर्म०। (१०) विनय-विरुद्ध कर्म । (११) बुद्ध-गासनके विरुद्ध कर्म० । (१२) पटिकुट्टकट धर्म विरुद्ध कोप्य और अयोग्य कर्म अकर्म्य है; उसे नहीं करना चाहिये। (५) कर्म छ "भिक्षुओ! यह छ क र्म (= दंड) हैं-(१) अधर्म कर्म, (२) वर्ग कर्म, (३) समग्र कर्म, (४) धर्म जैसेसे वर्ग कर्म, (५) धर्म जैसेसे समग्र कर्म, (६) धर्मसे समन कर्म। (६) अधर्म कर्मके भेद "भिक्षुओ! क्या है अधर्म कर्म ? क.. (१) "भिक्षुओ! न प्नि के साथ दो (वचनोंके साथ कियेजानेवाले) कर्मको केवल सप्लिने कर्म करता है और कर्म-बायको नहीं अनु श्रा व ण कराता, वह अधर्म कर्म है। (२) भिक्षुओ ! अनिके नाथ दो (वचनोंके साथ किये जानेवाले) कर्ममें दो नप्नियोंसे कर्म करता है और कर्म-वाक्को की अनुश्रावण कगता वह अधर्म कर्म है। (३) ज्ञप्ति महित दो (वचनोंके माय किये जानेवाले) वर्म एवाही याम-वान ने कर्म करता है, और नप्तिको नहीं स्थापित करता वह अधर्म कर्म है। (८) ज्ञप्ति o । ! दिन्को वोट लेनेरे लिये प्रस्ताव पेदा करनेका टंग।