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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३५७

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३०२ ] ३-महावग्ग सहित दो (वचनोंके साथ किये जानेवाले) कर्ममें दो क र्म-वा कसे कर्म करता है और जप्तिको नहीं स्थापित करता, वह अधर्म कर्म है। ख. (१) भिक्षुओ! नप्ति सहित नार (वचनोंग किये जानेवाले) कर्ममें एक बप्तिसे कम करता है और कर्म-वाक्को नहीं अनुधावण करता वह अधर्म कर्म है। (२) भिक्षुओ! जान्न सहित चार (वचनोंरो किये जानेवाले) कर्ममें दो जप्नियोंने कर्म करता है और कर्म-वाक्को नहीं अनुवाद कराता तो वह अधर्म कर्म है। (३) भिक्षुओ! जप्ति सहित चार (बचनोंने किये जानेवाले) कम तीन ज्ञप्तियोंसे कर्म करता है । (४) ० चार जप्तियोंगे कर्म करता है । (५) ० एक कर्म-वाक्ने कर्म करता है और नप्ति को नहीं स्थापित करता वह अधर्म कम है। (६) ० दो कर्म-वाक्मे कर्म करता है और नप्निको नहीं स्थापित करता वह अधर्म कर्म है। (७) भिक्षुओ ! जप्नि महित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें चार कर्म-वाकोंसे कर्म करता है और जप्तिको नहीं स्थापित करता वह अधर्म कर्म है। --भिक्षुओ! यह कहा जाता है अ ध म क मं (=नियम-विरुद्ध दंड)। (७) वर्ग कर्मके भेद "भिक्षुओ ! क्या है वर्ग-कर्म ?-क. (१) भिक्षुओ ! नप्ति सहित दो (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें जितने भिक्षु क म (=दंड) को प्राप्त हैं वह नहीं आये हों, छन्द (=बोट) देनेवा का छन्द नहीं आया हो, और सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश (= निन्दा-वचन) करें, यह वर्ग कर्म है । (२) भिक्षुओ ! ज्ञप्ति सहित दो (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें जितने भिक्षुकर्मको प्राप्त है वह आये हों, किन्तु छन्द देनेवालोंका छन्द न आया हो, और सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश करें, यह वर्ग कर्न है। (३) भिक्षुओ! ज्ञप्ति सहित दो (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें जितने भिक्षु कर्म को प्राप्त है वह आये हों, छन्द देनेवालोंका छन्द भी आया हो, किन्तु सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश करें, यह बर्ग कर्म है। ख. (१) भिक्षुओ! ज्ञप्ति सहित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें जितने भिक्षु कर्मको प्राप्त हैं नहीं आये हों, छन्द देनेवालोंका छन्द नहीं आया हो, और सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश करें. यह वर्ग कर्म है। (२) भिक्षुओ! ज्ञप्ति सहित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें जितने भिक्षु कर्मको प्राप्त हों, वह आये हों, किन्तु छन्द देनेवालोंका छन्द न आया हो, और सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश करें. यह वर्ग कर्म है। (३) भिक्षुओ ! ज्ञप्ति सहित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें जितने नि कर्मको प्राप्त हों, वह आये हों, और छन्द देनेवालोंका छन्द भी आया हो किन्तु सम्मुख होनेपर प्रतित्रोत करें तो यह वर्ग कर्म है। (८) समग्र कर्म "क्या है भिक्षुओ ! समग्र-कर्म ? – (१) ज्ञप्ति सहित दो (वचनों द्वारा किये जानेवाले) कर्ममें जितने भिक्षु कर्मको प्राप्त हों वह आये हों, देनेवालोंका छन्द आया हो, सम्मुन्न होने प्रतिक्रोश न करें, यह समग्र कर्म है । (२) ज्ञप्ति सहित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें जिनसे भिक्षु कर्मको प्राप्त हों आये हों, छन्द देनेवालोंका छन्द आया हो, सम्मुख होनेपर प्रतिद्भोग न करें, यह समग्र कर्म है।-भिक्षुओ! यह कहा जाता है समग्र कर्म। (९) धर्माभाससे वर्ग-कर्म "क्या है भिक्षुओ! धर्म जैसेसे वर्ग-कर्म ?. क. (१) ज्ञप्ति सहित दो (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें पहले कर्म वाक्को अनुदान करावे, पीछे ज्ञप्ति स्थापित करे, जितने भिक्षु कर्मको प्राप्त हों वह न आये हों, छन्द देनेवालोंका छ !