९९२।१] वर्ग (=कोरम्) [ ३०३ नहीं आया हो, सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश करें, यह है धर्म जैसेसे वर्ग कर्म । (२) ज्ञप्ति सहित दो (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें पहले कर्मवाक्को अनुश्रावण कराये, पीछे ज्ञप्ति स्थापित करे, जितने भिक्षु कर्मको प्राप्त हों वह आये हों किन्तु छन्द देनेवालोंका छ न्द नहीं आया हो, सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश करें, यह है धर्म जैसेसे वर्ग-कर्म । (३) ज्ञप्ति सहित दो (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें पहले कर्मवाक्को अनुश्रावण कगये, पीछे ज्ञप्ति स्थापित करे; जितने भिक्षु कर्मको प्राप्त हों वह आये हों, छन्द देनेवालोंका छन्द भी आया हो, किन्तु सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश करें, यह है धर्म जैसेसे वर्ग कर्म। ख. (१) "ज्ञप्ति सहित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें पहले कर्म-वाक्को अनुश्र- वण कराये, पीछे ज्ञप्ति स्थापित करे; जितने भिक्षु क र्म को प्राप्त हों वह न आये हों, छन्द देनेवालोंका छन्द न आया हो, सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश करे, यह है धर्म जैसेसे वर्ग कर्म। (२) ज्ञप्ति सहित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें पहले कर्मवाक्को अनुश्रावण कराये, पीछे ज्ञप्ति स्थापित करे; जितने भिक्षु कर्मको प्राप्त हों आये हों (किन्तु) छन्द देनेवालोंका छन्द न आया हो, सम्मुख होनेपर प्र ति को श करे, यह है धर्म जैसेसे वर्ग कर्म। (३) ज्ञप्ति सहित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें पहले कर्म- वाक्को अनुधावण कराये, पीछे ज्ञप्ति स्थापित करे; जितने भिक्षु क र्म को प्राप्त हों आये हों, छन्द देनेवालोंका छन्द भी आया हो, (किन्तु) सम्मुख आनेपर प्रतिक्रोश करें, यह है धर्म जैसेसे वर्ग-कर्म ।- भिक्षुओ! यह है कहा जाता, धर्म जैसेसे वर्ग-कर्म । (१०) धर्माभाससे समग्र कर्म “क्या है भिक्षुओ! धर्म जैसेसे समग्रकर्म ?- (१) ज्ञप्ति सहित दो (वचनोंसे किये जाने- वाले) कर्ममें पहले कर्मवाक्को अनुश्रावण कराये, पीछे ज्ञप्ति स्थापित करे; जितने भिक्षु क र्म को प्राप्त हों वह आये हों, छन्द देनेवालोंका छन्द आया हो, सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश न करे, यह है धर्म जनेसे स म न क भ । (२) ज्ञप्ति सहित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें पहले कर्मवाक्को अनुश्रावण कराये, पीछे अप्ति स्थापित करे; जितने भिक्षु क र्म को प्राप्त हों वह आये हों, छन्द देने वालोंका छन्द आया हो, सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश न करे, यह है धर्म जैसेसे स म न क र्म।- भिक्षुओ ! यह है कहा जाता, धर्म जैसेसे स म य क म । (११) धर्मसे समग्रकर्म "क्या है भिक्षुओ! धर्मसे समग्रकर्म ?-(१) ज्ञप्ति सहित दो (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्म में पहले एक नप्तिको स्थापित करे पीछे एक कर्मवाक् से कर्म करे; जितने भिक्षु कर्मको प्राप्त है वह आये हों, छन्द देनेवालोंका छन्द आया हो, सम्मुख होनेपर प्रतिक्रोश न करे, यह है धर्मसे स म ग्र काम । (२) नप्ति सहित चार (वचनोंसे किये जानेवाले) कर्ममें पहिले एक ज्ञप्ति स्थापित करे, पीछे तीन कर्म दायोंन कर्म करे; जितने भिक्षु कर्मको प्राप्त हैं वह आये हों, छन्द देनेवालोंका छन्द आया हो, सम्मुख होनेपर प्रतिकोग न करे, यह है धर्म से स म य क र्म। भिक्षुओ ! यह है धर्मसे समग्रकर्म । 5२-पाँच प्रकारके संघ और उनके अधिकार (१) वर्ग ( कोरम् ) द्वारा संघोंके प्रकार "का पात्र हैं-(३) चतुर्वर्ग (चार व्यक्तियोंका) निभ-मंघ, (२) पंचवर्ग (=पाँच पहिलोला) () दसवर्ग (-दम आदमियोंदा)०, (८) विंगतिदर्ग (=बीन आदमियोंका), (५। अनिमः पिगनिवर्ग (दीमने अधिक व्यक्तियोंका) ।
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