पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३५९

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३०४ ] ३-महावग्ग [ २६ (२) संघोंके अधिकार "क. (१) वहाँ भिक्षुओ ! जो यह चतुर्वर्ग भिक्षु-संघ है वह–उ प संप वा, प्र वा र णा. आ वा न,—इन तीन कर्मोको छोळ धर्मगे-समन हो सभी कर्मोक करने योग्य है। 4 "(२) वहाँ भिक्षुओ ! जो पं च वर्ग भिक्षु-संघ है वह-आह्वान और मध्यम जनपदों (=युक्तप्रान्त और विहार) में उपसम्पदा इन दो कर्मोको छोळ धर्मसे समग्र हो सभी कॉक करने योग्य है। 5 "(३) वहाँ भिक्षुओ! जो यह दगवर्ग भिक्षु-संघ है वह-आह्वान-एक कर्मको छोड़ 16 "(४) वहाँ भिक्षुओ ! जो विश ति वर्ग भिक्षु सं घ है वह धर्मसे समग्न हो सभी कर्मोक करने योग्य है। 7 वहाँ भिक्षुओ ! जो यह अतिरेक विश ति वर्ग भिक्षु सं घ है वह धर्मसे समग्र हो सभी कर्मोके करने योग्य है । 8 (३) वर्ग (=कोरम ) पूरा करनेका उपाय १-- "भिक्षुओ ! यदि चतुर्वर्गसे करने लायक कर्म हो तो चौथी भिक्षुणीसे (संख्या पूरी करके) कर्मको करे; किन्तु अ क र्म (=अयुक्त रीतिसे कर्म) न करे। भिक्षुओ ! यदि चतुर्वर्गसे किया जाने- वाला कर्म हो तो चौथी शिक्षमाणासे (संख्या पूरी करके) कर्मको करे; किन्तु अकर्मको न करे। चौये श्रामणेर० । ० चौथी श्रामणेरी० । ० चौथे (भिक्षु-)शिक्षाको प्रत्याख्यान करनेवाले० । ० चौथे अन्तिम वस्तु (=पा रा जि क)के दोषी० । ० चौथे आपत्ति (=दोप) के न देखनेसे उत्क्षिप्तक० । ० चौथे आपत्तिके न प्रतिकार करनेसे उत्क्षिप्तक० । ० चौथे बुरी धारणाके न त्यागनेसे उत्क्षिप्तक० । ० चौथे पंडक० । ० चौथे चोरके साथ सह-वास करनेवाले० । चौथे तीथिकोंके पास चले गये । ० चौथे तिर्यक (=नाग आदि) योनिमें गये० । ० चौथे मातृघातक० । ०चौथे पितृघातक ०। चौथे अर्हत्यातक० । चौथे भिक्षुणीदूषक० । ० चौथे संघमें फूट डालनेवाले० । ० चौथे (बुद्धके शरीरसे) लोहू निकालनेवाले । यदि भिक्षुओ ! च तुर्वर्ग से किया जानेवाला कर्म हो तो चौथे (स्त्री-पुरुप) दोनों लिंगबालेने (संख्या पूरी करके) कर्मको करे किन्तु अकर्मको न करे। ० चौथे भिन्न संवासवाले० । ० चौथे भिन्न सीमामें रहनेवाले० । ० चौथे ऋद्धिसे आकाशमें खळे । ० संघ जिसका कर्म (=इन्साफ़) कर रहा है उसे चौथा कर कर्म करे किन्तु अकर्म न करे।"9 ( इति ) चतुर्वर्गकरण २-"यदि भिक्षुओ ! पं च वर्ग से किया जानेवाला कर्म हो तो पाँचवीं भिक्षुणीसे (संख्या पूरी करके) कर्म करे, अकर्म न करे। ०।२० संघ जिसका कर्म (=इन्साफ़) कर रहा है उसे चौथा कर कर्म करे किन्तु अकर्म न करे।" 10 ( इति ) पंचवर्गकरण ३–“यदि भिक्षुओ ! द श वर्ग से किया जानेवाला कर्म हो तो दसवीं भिक्षुणीसे (संख्या पूरी करके) कर्म करे, अकर्म न करे ० । संघ जिसका कर्म कर रहा है उसे दसवाँ कर कर्म करे किन्तु अकर्म न करे।" II ( इति ) दशवर्गकरण १मध्यम जनपदोंकी सीमाके लिये देखो ५९३।२ पृष्ठ २१३ । 'चतुर्वर्गकोही तरह यहाँ भी समझना चाहिये ।