- ९९२।५ ] वर्ग (कोरम्) [ ३०५ ४--"यदि भिक्षुओ ! विश ति वर्ग से किया जानेवाला कर्म हो तो वीसवीं भिक्षुणीसे (संख्या पूरी करके) कर्म करे, अकर्म न करे। संघ जिसका क र्म कर रहा है उसे बीसवाँ कर कर्म करे किन्तु अकर्म न करे।" 12 ( इति ) विंशतिवर्गकरण ५---"(१) चाहे भिक्षुओ! पा रि वा सि करे को चौथा बना परिवास दे, मू ल से प्रति क - र्ष ण करे, मा न त्व दे, वीसवाँ वना आह्वान करे, किन्तु अकर्म न करे । 13 (२) चाहे भिक्षुओ ! मूलसे प्रति क र्पण करने योग्यको चौथा बना० । (३) चाहे भिक्षुओ ! मा न त्व देने योग्यको चौथा वना० । (४) चाहे भिक्षुओ ! मा न त्व चा रि क को चौथा बना० । (५) चाहे भिक्षुओ ! आह्वान करने योग्यको चौथा बना० ।" 14 (४) संघके वीच फटकारना किसके लिये लाभदायक और किसके लिये नहीं १---"भिक्षुओ ! किसी किसीको संघके बीच प्रति को श न (=डाँटना) लाभदायक है और किसी किसीको संघके बीच प्रतिक्रोशन लाभदायक नहीं है। भिक्षुओ! किसीको संघके बीच प्रति- क्रोगन लाभदायक नही है ? -भिक्षुणीको भिक्षुओ! संघके बीच प्रति को श न करना लाभदायक नहीं है। शिक्षमाणाको०। श्रामणेरको०। श्रामणेरीको० । शिक्षाका प्रत्याख्यान करनेवालेको० । अन्तिम वस्तुके दोषीको० । उन्मत्तको० । विक्षिप्तचित्तको० । होश न रखनेवालेको० । आ पत्ति के न देखनेसे उ त्क्षिप्त क को० । आ पत्ति के अप्रतिकार करनेसे उत्क्षिप्त किये गयेको० । बुरी धारणा को न त्यागनेसे उत्क्षिप्त किये गयेको० । पंडकको० । चोरके साथ रहनेवालेको। तीथिकोंके पास चले गयेको । ति य क योनिमें गयेको०। मातृघातकको०। पितृघातकको०। अर्हत्घातकको० । भिक्षुणीदूपकको० । संघमें फूट डालनेवालेको० । ०लोहू निकालनेवालेको० । (स्त्री पम्प) दोनों लिंग वालेको । भिन्न सहवासवालेको० । भिन्न सीमामें रहनेवालेको० । ऋद्धिसे आकाशम खड़ेको० । जिसका संघ कर्म कर रहा हो, उसको भी भिक्षुओ ! संघके बीच प्रतिक्रोशन लाभदायक नहीं। भिक्षुओ! इनका संघव वीच प्रतिक्रोशन लाभदायक नहीं है । २--"भिक्षुओ ! किसका संघके बीच प्रतिक्रोशन लाभदायक होता है ?–एक साथ रहनेवाले, एक मीमामें ठहरनेवाले प्रकृतिस्थ भिक्षुको, कमसे कम अपने पास बैठनेवाले भिक्षुको सूचित करते संघके वीच प्रतित्रोवन लाभदायक होता है। भिक्षुओ! इसको संघके बीच प्रतिक्रोशन लाभदायक है।" (५) ठोक और वेठीक निस्सारण "भिक्षुओ! यह दो निस्सारणा हैं-कोई व्यक्ति नि स्सा र ण (=निकालने) (के दोप) को प्राप्त होता है और उसे संघ निकालता है; (तो उनमेंसे) कोई सु नि स्सा रि त होता है और कोई दु निम्मा रित। १--"भिक्षुओ! कौनसा व्यक्ति नि स्सा र ण (के दोपको अप्राप्त है और उसे संघ निकालता है. (इनलिये) दु नि न्ना रित है ? जब भिक्षुओ! एक भिक्षु निर्दोप, गुड, होता है और उसे संघ निका- लता है. (नलिये) दृ नि मा रि त है। भिक्षुओ ! इस व्यक्तिके लिये कहा जाता है (कि वह) निन्सारण (के दोष) को अप्राप्त है, और उने संघने निकाला; (अतः)दु नि स्सा रित है। 15 - ! 'चतुर्वर्गकी ही तरह यहां भी समझना चाहिये । बुल्ल २९१२ (पृष्ट ३६६)। $
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