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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३७४

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c ९९६११ ] तर्जनीय कर्म [ ३१७ (५) उत्क्षेपणीय कर्मकी माफी क. "(१) भिक्षुओ! यहाँ एक भिक्षुका संघने आपत्ति न देखनेके लिये उत्क्षेपणीय कर्म किया है । (तब वह) ठीकसे रहता है. आपत्तिके न देखनेसे किये गये उत्क्षेपणीय कर्मकी माफ़ी चाहता है। वह अधर्मसे वर्ग हो आपत्तिके न देखनेसे किये गये उसके उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करते हैं । वह उस आवासमेंसे दूसरे आवासमें जाता है । 300 "(२) ० अधर्मसे समग्न हो । 301 "(३) ० धर्मसे वर्ग हो० । 302 " (४) ० धर्माभाससे वर्ग हो० । 303 "(५) ० धर्माभाससे समग्र हो । 304 "(२५) ० धर्माभाससे वर्ग हो आपत्तिके न देखनेसे किये गये उसके उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करते हैं।" 324 ख. “(१) भिक्षुओ! यहाँ एक भिक्षुका संघने आपत्तिका प्रतिकार न करनेके लिये उत्क्षेप- णीय कर्म किया है। (तव वह) ठीकसे रहता है • आपत्तिका प्रतिकार न करनेके लिये किये गये उत्क्षेप- णीय कर्मकी माफ़ी चाहता है। वह अधर्मसे वर्ग हो आपत्तिका प्रतिकार न करनेके लिये किये गये उसके उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करते हैं। वह उस आवाससे दूसरे आवासमें जाता है । 325 “(२) ० अधर्मसे समग्र हो । 326 “(३) ० धर्मसे वर्ग हो० 1 327 "(४) ० धर्माभाससे वर्ग हो । 328 "(५) ० धर्माभाससे समग्र हो० 1 329 "(२५) ० धर्माभाससे वर्ग हो आपत्तिके न प्रतिकार करनेसे किये गये उसके उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करते हैं।" 349 ग. “(१) भिक्षुओ! यहाँ एक भिक्षुका संघने बुरी धारणाके न छोळनेके लिये उत्क्षेपणीय कर्म किया है। (तव वह) ठीकमे रहता है० वुरी धारणाके न छोळनेके लिये किये गये उत्क्षेपणीय कर्मकी माफ़ी चाहता है। वह अधर्मसे वर्ग हो बुरी धारणा न छोळनेके लिये किये गये उसके उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करते हैं। वह उस आवासमेंसे दूसरे आवासमें जाता है । 350 “(२) ० अधर्मसे समग्र हो० । 351 "(३) ० धर्मसे वर्ग हो० । 352 “(४) ० धर्माभाससे वर्ग हो० । 353 "(५) ० धर्माभाससे समग्र हो० । 354 “(२५). धर्माभासने वर्ग हो दुरी धारणा न छोळनेके लिये किये गये उसके उत्क्षेपणीय कर्मको माफ़ करते हैं।" 374 १ 9 ६-नियम-विरुद्ध दंड-संशोधन (१) तर्जनीय कर्म १-"भिक्षुओ ! यहाँ एक भिक्षु झगळालू० होता है। वहाँ भिक्षुओंको ऐसा होता है- तर्जनीय कर्मकी तरह यहाँ भी दुहराना चाहिये ।