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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३८२

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१०९१७ ] दीर्घायु-जातक [ ३२५ (५) कलहके कारण अनुचित कायिक वाचिककर्म नहीं करना चाहिये उस समय भोजन करते वक़्त (गृहस्थके) घरमें भिक्षुओंने झगळा, कलह, विवाद किया; और अनुचित कायिक और वाचिक कर्म दिखलाया । हाथसे इशारा किया । लोग हैरान...होते थे- 'कैसे शाक्य पुत्रीय श्रमण भोजन करते वक्त (गृहस्थके घरमें) झगड़ा, कलह, विवाद करेंगे और अनुचित कायिक तथा वाचिक कर्म प्रदर्शित करेंगे; हाथका इशारा करेंगे !' भिक्षुओंने उन मनुष्यों- के हैरान होने...को सुना और जो वे अल्पेच्छ ० भिक्षु थे वे हैरान...होते थे- 'कैसे भिक्षु ० हाथका इशारा करेंगे !' तव उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही- "सचमुच भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंने ० हाथका इशारा किया ?" "(हाँ) सचमुच भगवान् ।” भगवान्ने फटकारकर धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! संघमें फूट होनेपर, अन्याय होनेपर सम्मोदन न करनेपर-'इतनेसे एक दूसरे- को अनुचित कायिक कर्म, वाचिक कर्म न दिखलायेंगे, हाथका इशारा न करेंगे'-(सोच) आसनपर बैठे रहना चाहिये । भिक्षुओ ! संघमें फूट होजानेपर, न्याय होनेपर, सम्मोदनके किये जानेपर, दूसरे आसनपर बैठना चाहिये ।"4 (६) कलह करनेवालोंकी ज़िद उस समय भिक्षु संघमें झगळा करते, कलह करते, विवाद करते, एक दूसरेको मुख (रूपी) गक्ति (=हथियार)से वेधते फिरते थे। वह झगळेको शान्त न कर सकते थे । तव एक भिक्षु जहाँ भगवान् थे वहाँ गया । जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर खळा होगया। एक ओर खळे उस भिक्षुने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! यहाँ संघमें भिक्षु झगळा करते ० झगलेको शान्त नहीं कर सकते । अच्छा हो भन्ने ! यदि भगवान् जहाँ वह भिक्षु हैं वहाँ चलें।" भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया । तब भगवान् जहाँ वे भिक्षु थे वहाँ गये । जाकर उन भिक्षुओंसे वोले- "वस भिक्षुओ ! मत झगळा, कलह, विग्रह, विवाद करो।" ऐसा कहनेपर एक अधर्मवादी भिक्षुने भगवान् से यह कहा- "भन्ते ! भगवान् ! धर्मस्वामी ! रहने दें । परवाह मत करें । भन्ते ! भगवान् ! धर्मस्वामी ! दृष्ट-धर्म (हेमी जन्म)के सुखके साथ विहार करें । हम इस झगळे, कलह, विग्रह, विवादको जान लेंगे।" दूसरी बार भी भगवान्ने उन भिक्षुओंसे यह कहा-"बस ० ।" दूसरी बार भी उम अधर्मवादी भिक्षुने भगवान्से यह कहा-भन्ते ! ० ।" (७) दीर्घायु जातक नव भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया-"भिक्षुओ ! भूतकालमें वा रा ण सी में ब्रह्मदत्त नामक का गि गज था। (वह) आटय-महाधनी-महा भोगवान महा सैन्य युक्त महावाहन युक्त

महाराज्य युक्त, भरे कोठागार वाला था । (उस समय) दी घिति नामक को स ल राजा था;

जोकि दन्द्रि, अल्पधन, अल्पभोग अल्पसैन्य, अल्पवाहन, थोळे राज्यवाला, अपरिपूर्ण कोप, कोठा- गारवाला था । तव भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्म दत्त ने चतुरंगिनी सेना तैयारकर को स ल राज दी पि नि पर चढ़ाई की । नव भिक्षुओ ! कोमलगज दीधितिको ऐसा हुआ—'काशिराज ब्रह्म द त