पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३८३

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३२६ ] ३-महावग्ग आढय ० है और मैं दरिद्र हूँ। मैं काशिराज ब्रह्मदत्तके साथ एक भिळन्त भी नहीं ले सकता। क्यों न मैं पहले ही नगर से चला जाऊँ ।' तब भिक्षुओ ! कोसलगज दीघिति महिणी (=पटरानी) को लेकर पहिलेही नगरसे भाग गया । तब भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्त कोसलराज दी घिति की मेना. बाहुन देश, कोप, और कोष्ठागारको जीतकर अधिकारमें किया । तब भिक्षुओ ! कोमलराज दीपिति आनं स्त्री सहित जिधर वा रा ण सी थी उधरको चला । क्रमशः जहाँ वाराणसी है वहाँ पहुँना। ना भिक्षुओ ! कोसल-रा ज दी घि ति ने अपनी स्त्री सहित वाराणसीके एक कोनेमें कुम्हारके घर में अज्ञान वेपसे परिव्राजकका रूप धारणकर वास किया । तब भिक्षुओ कोसलराज दी घि ति की महिषी अनिन्म हो गर्भिणी हुई । उसको ऐसा दोहद (= दोहळ) हुआ—वह सूर्यके उदयके समय की डा-शेर ( सुभूमि ) में सन्नाह और वर्म ( = कवच )से युक्त चतुरंगिनी सेनाको खळी देखना नाहती थी और खड्गकी धोवनको पीना चाहती थी। तब भिक्षुओ कोसलराज दी घि ति की महिपीने कोमा, राज दीधितिसे यह कहा- "देव ! मैं गर्भिणी हूँ। मुझे ऐसा दो ह द उत्पन्न हुआ है—सूर्यके उदयके समय क्रीडा क्षेत्र सन्नाह और वर्मसे युक्त चतुरंगिनी सेनाको खळी देखना चाहती हूँ और खड्गकी धोवनको पीना चाहती हूँ।' "देवि ! दुर्गतिमें पळे हम लोगोंको कहाँसे हम लोगोंके लिये क्रीडा क्षेत्रमें सन्नाह और वर्ग से युक्त चतुरंगिनी सेना खळी (होगी), और कहाँसे खड्गकी बोवन (आयेगी) ?' "देव ! यदि मैं न पाऊँगी तो मर जाऊँगी।' भिक्षुओ ! उस समय काशिराज ब्रह्मदत्तका ब्राह्मण पुरोहित कोसलराज दीधितिका गिर था। तव भिक्षुओ। कोसलराज दीघित, जहाँ काशिराज ब्रह्म दत्तका पुरोहित था, वहां गया । पुरोहित ब्राह्मणसे यह बोला- "सौम्य' ! तेरी स खि नी गभिणी है । उसको इस प्रकारका दो ह द उत्पन्न हुआ है-और खड्गकी धोवनको पीना चाहती है।' "तो देव हम भी देवीको देखना चाहते हैं।' "तब भिक्षुओ ! को स ल रा ज दी घिति की महिपी जहाँ का शि रा ज ब्रह्मदनका पुरोः । ब्राह्मण था वहाँ गई. . .पुरोहित ब्राह्मणने दूरसे ही कोसलराज दी घि त की महिपीको आने देना । देखकर आसनसे उठ एक कंधेपर उत्तरासंघ कर जिधर को स ल रा ज दीघितिकी महिणी थी । हाथ जोन तीन बार उदा न (चित्तोल्लाससे निकला शब्द) कहा-अहो ! कोमलराज कोलम है.' अहो ! कोमलराज कोखमें हैं । कोसलराज कोखमें हैं (और रानीसे कहा)-देवि प्रसन्न हो. तु गर्न उदयके समय क्रीडा क्षेत्रमें सन्नाह और वर्मसे युक्त चतुरंगिनी मेनाको खली देखेगी, और मनः धोवनको पीयेगी।" "तब भिक्षुओ ! काशिगज ब्रह्मदत्तका पुरोहित ब्राह्मण जहाँ कागिराज ब्रह्मदन था। गया। जाकर यह बोला-'देव ! ऐमी माइन है इसलिये कल सूर्यके उदयके ममय की गन्नाह और बर्ममे युवन चतुरंगिनी सेना बळी हो और ग्वग धोये जायें ।' "तब भिक्षुत्रो ! काशिगज ब्रह्मदनने आदमियोंको आज्ञा दी-'भणे ! जैमा पुगतिर ... बहता है वैमा कगे।' "भिक्षुझो ! (इस प्रकार) कोमलगज दीधितिकी महिपीने मर्यक उदयये समय जाकर... 'मिडके नंबोधन में इस शब्दका प्रयोग होना था।