१०१११७ ] दीर्घायु-जातक [ ३२७ सन्नाह और वर्मसे युक्त चतुरंगिनी सेनाको खळी देख पाया तथा खड्गकी धोवनको पी पाया। "तव भिक्षुओ ! कोसल राज दीघितिकी महिपीने उस गर्भके पूर्ण होनेपर पुत्र प्रसव किया (माता-पिताने) उसका दी र्घा य नाम रखा । तब भिक्षुओ! बहुत काल न जाते जाते दीर्घायु कुमार विज्ञ हो गया । कोसलराज दीघितको वह हुआ—'यह काशिराज व ह्म दत्त हमारे अनर्थका करने वाला है । इसने हमारी सेना, वाहन, देश, कोप, और कोष्ठागारको छीन लिया है । यदि यह जान पायेगा तो हम तीनोंको मरवा डालेगा । क्यों न मैं दीर्घा यु कुमारको नगरसे वाहर वसा दूं ।' "तव भिक्षुओ ! कोसलराज दी घि तिने दीर्घा यु कुमारको नगरसे बाहर बसा दिया ।... दी र्घा यु कुमार नगरसे बाहर वसते थोड़े ही समयमें सारे शिल्पोंको सीख गया ।...उस समय कोसल राज दी घि ति का हजाम काशिराज ब्र ह्य दत्त के पास रहता था। भिक्षुओ ! एक समय कोसलराज दीघितिके हजामने कोसलराज दी घि त को स्त्री सहित वा रा ण सी के एक कोनेमें कुम्हारके घरमें अज्ञात वेषसे परिव्राजकके रूपमें वास करते देखा । देखकर जहाँ काशिराज ब्रह्म दत्त था वहाँ गया । जाकर काशिराज ब्रह्म दत्त से यह बोला-- "देव ! कोसलराज दी घि ति स्त्री सहित वाराणसी० परिव्राजकके रूपमें वास कर रहा है।' "तब भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्तने आदमियोंको आज्ञा दी- "तो भणे ! कोसलराज दीघितिको स्त्री सहित ले आओ !' "अच्छा देव !' (कह) वे आदमी काशिराज ब्रह्मदत्तको उत्तर दे कोसलराज दी घिति को स्त्री सहित ले आये। "तब भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्तने आदमियोंको आज्ञा दी–'तो भणे ! कोसलराज दी घिति को स्त्री सहित मज़बूत रस्सीसे पीछेकी ओर बाँह करके अच्छी तरह बाँध, छुरेसे मुंळवा, ज़ोरकी आवाज़वाले नगाळेके साथ एक सळकसे दूसरी सळकपर, एक चौरस्तेसे दूसरे चौरस्तेपर घुमा दक्खिन दरवाजेसे नगरके दक्खिन ओर चार टुकळे कर चारों दिशाओंमें बलि फेंक दो।' "अच्छा देव !' कह . . वे आदमी काशिराज ब्रह्मदत्तको उत्तरदे, कोसलराज दी घिति को स्त्री सहित ० मज़बूत रस्सीसे पीछेकी ओर वाह वाँध, छुरेसे शिर मुंळवा ज़ोरके आवाज़वाले नगाळेके साथ एक सळकसे दूसरी सळकपर, एक चौरस्तेसे दूसरे चौरस्तेपर घुमाते थे। तव भिक्षुओ ! दी र्घा यु कुमारवो यह हुआ—'मुझे माता-पिताका दर्शन किये देर हुई । चलो माता-पिताका दर्शन करूं ।' तव भिक्षुओ ! दी र्घा यु कुमारने वाराणसीमें प्रवेशकर माता-पिताको मोटी रस्सीसे बाँहे पीछेकी ओर बँधे एक चौरस्तेसे दूसरे चौरस्तेपर घुमाते देखा । देखकर जहाँ माता-पिता थे वहाँ गया।.. को स ल रा ज दी घिति ने दूरसे ही कुमार दीर्घायु को आते देखा । देखकर दीर्घायु कुमारसे यह कहा- "तात दीर्घायु ! मत तुम छोटा वळा देखो । तात दीर्घायु ! वैरसे वैर शांत नहीं होता । अवैर ने ही तात दीर्घायु वैर शांत होता है।' "ऐसा कहनेपर भिक्षुओ ! उन आदमियोंने कोसलराज दी घिति से यह कहा- 'यह कोमलराज दी घिति उन्मत्तहो वक-झक कर रहा है। दीर्घायु इसका कौन है ? किसको यह ऐसे कह रहा है-तात दीर्घायु, मत तुम छोटा वळा देखो० अवैरसे ही तात दीर्घायु ! वैर शांत होता है। ""भणे ! मैं उन्मत्त हो वकझक नहीं कर रहा हूँ वल्कि (मेरी वातको) जो विज्ञ है वह जानेगा।' "भिक्षुनो ! दूसरी बार भी ० । तीसरी वार भी कोसलराज दी घि ति ने कुमार दीर्घायसे यह
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