पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३८५

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"द निर्णमा : दायायु कुमार कागिगज ब्रह्मदन का पहले उठने-बादा, पाये" ३२८ ] ३-महावग्ग कहा—'तात छोटा वळा मत देखो ० अवैरसे ही तात दीर्वा यु ! वैर शांत होता है ।' 'तीसरी बार भिक्षुओ ! उन आदमियोंने कोसलराज दी घि ति से यह कहा-'यह कोमलगा दी घि ति उन्मत्त हो ।' "भणे ! मैं उन्मत्त हो बल-झक नहीं कर रहा हूँ ।' 'तब भिक्षुओ ! वे आदमी कोसलराज दी घिति को स्त्री सहित एक सळकसे दूसरी सकता एक चौरस्तेसे दूसरे चौरस्तेपर घुमा, दक्षिणद्वारसे लेजा, नगरके दक्षिण चार दुकळकर चाने दिशाओंमें वलि डाल गुल्म (=पहरेदार) रख चले गये । "तब भिक्षुओ! दी र्घा यु कु मा र ने वाराणसीमें जा शराब ले पहरेदारोंको पिलाया । जन के मतवाले होकर पळ गये तब लकळी ला चिता बना, माता-पिताके शरीरको चितापर रख आगो हाथ जोळ तीन बार चिताकी प्रदक्षिणा की। "उस समय भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्म दत्त ऊपरके महलपर था।. . .कागिराज ब्रह्म द त ने दीर्घायुको तीन बार चिताकी प्रदक्षिणा करते देखा । देखकर उसको ऐसा हुआ निस्संगय वर आदमी कोसलराज दी घिति का जातिवाला या रक्त-संबंधी है । अहो मेरे अनर्थके लिये किसीने (यह बात मुझे नहीं) वतलाई ।' 'तव भिक्षुओ ! दीर्घायु कुमार ! अरण्यमें जा पेट भर रो आँसू पोंछ वाराणसीम प्रयगार अन्तःपुर (=राजाके रहनेके दुर्ग) के पासकी हथसारमें जा महावतसे यह बोला-'आचार्य में (आपरें शिल्प सीखना चाहता हूँ।' " 'तो भणे माणवक ! (=बच्चा) सीखो।' "तव भिक्षुओ ! दीर्घायु कुमार रातके भिनसारको दीर्घायु कुमार हथसारमें मंजु स्वरसे गाना और वीणा बजाता था । काशिराज ब्रह्म दत्त ने रातके भिनसारको उठकर हथसारमें मंजु गीत गाते और वीणा बजाते (किसी आदमी) को सुना । सुनकर आदमियोंसे पूछा- " 'भणे ! (यह) कौन रातके भिनसारको उठकर हथसारमें मंजु स्वरसे गाता ओर नीया वजाता था ?' 'देव ! अमुक महावतका शिप्य माणवक रातके भिनसारको उठकर मंजुम्वरने गाना और वीणा वजाता था। 'तो भणे ! उस माणवकको यहाँ ले आओ।' 'अच्छा देव !' (कह) . . वे आदमी काशिराज ब्रह्मदत्तको उत्तर दे दीर्घा यु कुमार ले आये।" "(राजाने पूछा)-'भणे माणवक! क्या तू रातके भिनसारको उठकर मंजुम्बग्म गाना वीणा वजाता था ?' 'हाँ देव !' 'तो भणे माणवक ! गावो, और वीणा वजाओ।' 'अच्छा देव- -(कह) दीर्घा यु कुमा र ने काशिराज ब्रह्मदत्तको मंतुष्ट करनेकी मंजु स्वरने गाया और बीणा बजाया । "भणे माणवक ! तू मेरी मेवामें रह । "अच्छा देब' (वह) . . दी र्घा य कुमार ने का गि गज ब्रह्मदनको उनर दिया ! 66 46 54 क्या-काम है--पूछनेवाला, प्रियचारी (और) प्रियवादी गेवक होगया । लन funny! 7.4.