पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३८६

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14 १०१७ ] दीर्घायु-जातक [ ३२९ ब्रह्मदत्तने वहुत थोळेही समय बाद दीर्घायुकुमारको अपने अन्तरंगके विश्वसनीय स्थानपर स्थापित किया। "(एक बार).. काशिराज ब्रह्म द त ने दीर्घायु कुमारसे यह कहा-'तो भणे! माणवक रथ जोतो शिकारके लिये चलेंगे।' 'अच्छा, देव' (कह) .. उत्तरदे, दीर्घायु कुमारने रथ जोत, काशिराज ब्रह्मदत्तसे यह कहा- "देव ! रथ जुत गया । अब जिसका काल समझतेहों (वैसा करें) "तव भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्त रथपर चढ़ा और दीर्घा यु कु मा र ने रथको हाँका । उसने ऐसे रथ हाँका कि सेना दूसरी ओर चली गई और रथ दूसरी ओर : तव भिक्षुओ! काशिराज ब्रह्मदत्तने दूर जाकर दीर्घायु कुमारसे यह कहा- " 'तो भणे माणवक ! रथको छोड़ो । थक गया हूँ लेटूंगा।' " 'अच्छा देव !' (कह) दीर्घायु कुमार काशिराज ब्रह्मदत्तको उत्तर दे, रथ छोळ पृथ्वीपर पलथी मारकर बैठ गया। तब.. .काशिराज ब्रह्मदत्त दीर्घायु कुमारकी गोदमें सिर रख सो गया । थका होनेसे क्षणभरमें ही उसे नींद आगई । तब भिक्षुओ ! दीर्घायु कुमारको यह हुआ---'यह काशि- राज ब्रह्मदत्त हमारे वहुतसे अनर्थीका करनेवाला है । इसने हमारी सेना, वाहन, देश, कोश और कोष्ठागारको छीन लिया । इसने मेरे माता-पिताको मारडाला । यह समय है जब कि मैं वैर साधू ।' -(सोच)म्यानसे उसने तलवार निकाली । तब भिक्षुओ । दीर्घा यु कु मा र को यह हुआ—'मरनेके समय पिताने मुझे कहा था-'तात दीर्घायु ! मत तुम छोटा बळा देखो, तात दीर्घायु, वैरसे वैर शान्त नहीं होता । अवैर से ही तात दीर्घायु ! वैर शान्त होता है ।' यह मेरे लिये उचित नहीं कि मैं पिताके वचनका उल्लंघन करूँ', (सोच) म्यानमें तलवार डालदी । दूसरी बार भी० । तीसरी वार भी दीर्घायु कुमारको यह हुआ--'यह काशिराज० म्यानमें तलवार डालदी। "तव भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्त, भयभीत, उद्विग्न, शंकायुक्त, त्रस्त हो सहसा (जाग) उठा । तव.. दीर्घायु कुमारने काशिराज ब्रह्मदत्तसे यह कहा-'देव ! क्यों तुम भयभीत जाग उठे ?' " भणे माणवक ! मुझे स्वप्नमें कोसलराज दी घिति के पुत्र दीर्घायु कुमारने खड्गसे (मार) गिराया था, इसीसे मैं भयभीत० (जाग) उठा।' "तव भिक्षुओ ! दीर्घायु कुमारने वाएँ हाथसे काशिराज ब्रह्मदत्तके सिरको पकळ दाहिने हाथ में खड्गले, काशिराज ब्रह्म दत्त से यह कहा- " 'देव ! मैं हूँ कोसलराज दी घि त का पुत्र दीर्घा यु कु मा र । तुम हमारे बहुत अनर्थ करने वाले हो । तुमने हमारी सेना, वाहन, देश, कोश, और कोष्ठागारको छीन लिया। तुमने मेरे माता पिताको मार डाला यही समय है कि मैं (पुराने) वैरको साधू ।' "तब भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्त दीर्घायु कुमारके पैरों में सिरसे पळ, दीर्घायु कुमारसे यह बोला-'नात दीर्घायु ! मुझे जीवन दान दो, तात दीर्घायु मुझे दान दो।' 'देवको जीवन दान में दे सकता हूँ, देव भी मुझे जीवन दान दें।' 'तो तात दीर्घायु ! तुम मुझे जीवन दान दो, मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ।' "तव भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्त और दीर्घायु कुमारने एक दूसरेको जीवन दान दिया और (एकने दूसरे का) हाथ पवळा, और द्रोह न करनेकी शपथ की। "तद भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्तने दीर्घायु कुमारसे यह कहा- " 'तो तात ! दीर्घायु ! रथ जोतो चलें ।' 14 14