पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३९५

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३-महावग्ग [ १०९३१२ अनुयायी भिक्षु उत्क्षिप्त भिक्षुको लेकर जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये, जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठ गये । एक ओर बैठकर उन भिक्षुओंने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! यह उत्क्षिप्तक भिक्षु कहता है-'आवुसो ! यह आपत्ति है अन्-आपत्ति नहीं०, आओ आयुष्मानो ! मुझे (संघमें) मिलादो।' भन्ते ! तो कैसे करना चाहिये ?" "भिक्षुओ ! यह आपत्ति है, अन्-आपत्ति नहीं । यह भिक्षु आपन्न है, अन्-आपन्न नहीं है । उत्क्षिप्त है अन्-उत्क्षिप्त नहीं है । अ-कोप्य स्थानार्ह-धार्मिक कर्मसे उत्क्षिप्त है । भिक्षुओ ! चूंकि यह भिक्षु आपन्न है, उत्क्षिप्त है, और आपत्ति (=दोष) देखता है; अतः इस भिक्षुको मिलालो।"7 तव उत्क्षिप्तके अनुयायी भिक्षुओंने उस उत्क्षिप्त भिक्षुको मिला (=ओ सा र ण) कर, जहाँ उत्क्षेपक भिक्षु थे, वहाँ गये । जाकर उत्क्षेपक भिक्षुओंसे कहा- "आवुसो ! जिस वस्तु (= बात) में संघका भंडन-कलह, विग्रह, विवाद हुआ था, संघ (फूट) भेद-संघ जी=सं घ-व्य व स्था न=संघ-ना ना क र ण हुआ था। सो (उस विषयमें) यह भिक्षु आपन्न है, उत्क्षिप्त है, अ व-सा रि त (=मिला लिया गया) है। हाँ तो ! आवुसो ! हम इस व स्तु ( मामला, वात) के उप-श म न ( फैसला, मिटाना) के लिये संघकी सा म ग्री (=मेल) करें।" तव वह उत्क्षेप क (=अलग करनेवाले) भिक्षु जहाँ भगवान् थे.. . .जाकर भगवान्को अभिवादनकर...एक ओर बैठ. . .भगवान्से बोले- (१) संघसामग्रोका तरोका "भन्ते ! वह उत्क्षिप्त-अनुयायी भिक्षु ऐसा कहते हैं---'आवुसो ! जिस वस्तुम मंधकी सामग्री करे ।' भन्ते ! कैसे करना चाहिये ?" "भिक्षुओ ! चूंकि वह भिक्षु आपन्न, उत्क्षिप्त, पश्यी ( दर्शी-आपत्ति देखने माननेवाला) और अब-सारित है । इसलिये भिक्षुओ ! उस वस्तुके उप-शमनके लिये मंघ, मंघकी मामग्री करे। 8 और वह इस प्रकार करनी चाहिये-रोगी निरोगी सभीको एक जगह जमा होना चाहिये किसीको (बदला) भेजकर, छन्द (=बोट) न देना चाहिये । जमा होकर, योग्य, समर्थ भिक्षु-द्वाग संघ को ज्ञापित (=मूचित-संबोधित) करना चाहिये- न प्ति-'भन्ने ! संघ मुझे सुने । जिस वस्तुमें संघ में भंडन, कलह, विग्रह, विवाद हुआ था; सो (उस विषयमें) यह भिक्षु आपन्न है, उत्क्षिप्त, (है) पय्यी, अव-साग्नि है । यदि गंत्र उनि- (=पत्तकल्ल) समझे, तो संघ उस बस्तुके उपगमनके लिये संघ-मामग्री करे--यह जन्ति (गुनना) है।' ख. अनुश्रावण-(१) भन्ने ! नंब मुझे सुने-जिम बस्तुमें अवनाग्नि है। गंध उग वन के उपशमनके लिये संघ-सामग्री कर रहा है । जिम आयु'मान्को उम बन्नुके उपगमनके दिये गंग- सामग्री करना, पमन्द है, बह चुप रहे ; जिमको नहीं पसन्द है, बह बोले । (२) दुगरी बार भी । (३) तीसरी बार भी। ग. धारणा-नंघने उम बस्नुके उपगमनके लिये संघ मा म ग्री (= फट गंधको पन करना) की; संघ-राजीसंघ-भेद नि ह त (=नप्ट) हो गया । 'संघको पसन्द है, मानिने ना है-यह में समझता हूँ। (२) नियम-विरुद्ध संघ-सामग्री उसी समय पोनय करना चाहिये और प्रातिमोथ डेटा (-प्रतिमा पार) करना चाहिये। तब आयुष्मान् पानि जहां भावान् थे बढ गये ! जाकर भगवान रियाद ओर बैठे। एक ओर बैं भावुमान् उपालिने भगवान् कर कहा-