० १०९४ ] योग्य विनयधरकी प्रशंसा [ ३३७ "भन्ते ! जिस वस्तुसे संघमें झगळा, कलह, विग्रह, विवाद, संघ-भेद (संघमें फूट) - संघ राजी=संघ-व्यवस्थान, संघका बिलगाव हो, संघ उस वस्तुको बिना विनिश्चय (=फैसला) किये अमूल (=वेजळकी बात) से मूलको पा संघ-सामग्री (=सारे संघको एक करना) करे । तो भन्ते ! क्या वह संघ-सामग्री धर्मानुसार है ?" "उपालि ! जिस वस्तुसे संघमें० अमूलसे मूलको पा संघ-सामग्री करता है, उपालि ! वह संघ- सामग्री धर्म विरुद्ध है।" (३) नियमानुसार संघ-सामग्री "भन्ते ! जिस वस्तुसे संघमें झगळा हो, संघ उस वस्तुका विनिश्चय कर मूलसे मूलको पकळ (यदि) संघ-सा म ग्री करे, तो भन्ते ! क्या वह संघ-सा म ग्री धर्मानुसार है ?" "उपालि ! • वह संघ-सा म ग्री धर्मानुसार है ।" 10 (४) दो प्रकारकी संघ-सामग्री "भन्ते ! संघ-सामग्री कितनी है ?" "उपालि ! संघ-सामग्री दो हैं--(१) उपालि ! (एक) संघ-सामग्री अर्थ-रहित किन्तु व्यंजन-युक्त है; (२) उपालि (एक) संघ-सामग्री अर्थ-युक्त और व्यंजन-युक्त है। उपालि ! कौनसी संघ-सामग्री अर्थ-रहित किन्तु व्यंजन-युक्त है ? उपालि ! जिस वस्तुसे संघमें झगळा० होता है संघ उस वस्तुका विना निर्णय किये, अमूलसे मूलको पा संघ-सामग्री करता है, उपालि ! यह कही जाती है, अर्थ-रहित, व्यंजन-युक्त संघ-सामग्री। उपालि ! कौनसी सामग्री , अर्थ-युक्त और व्यंजन-युक्त है ? उपालि ! जिस वस्तुसे संघमें झगळा० होता है, संघ उस वस्तुका निर्णय कर मूलसे मूलको पा संघ- सा म नी करता है; उपालि ! यह कही जाती है अर्थ-युक्त और व्यंजन-युक्त (भी)।-उपालि ! यह दो संघ-सामग्री हैं।" II ४-योग्य विनयधरकी प्रशंसा तव आयुष्मान् उपालि आसनमे उठ, एक कंधेपर उत्तरासंगकर जिधर भगवान् थे उधर हाथ जोळ भगवान्ने गाथामें कहा- "संघके कर्तव्यों और मन्त्रणाओं, उत्पन्न अर्थो और विनिश्चयों (=पं.सलों) के समय किस प्रकारका पुरुष बळा उपकारक (होता है); (और) कैसे भिक्षु विगेपतः ग्रहण करने लायक होता है ? (जो) प्रधान शीलोंमें दोप-रहित, अपेक्षित आचारवाला (और) इन्द्रियोंमें सुसंयमी हो, विरोधी भी धर्मसे (जिसे) नहीं (दोपी) कह सकते, उस में वै मी (कोई बुराई) नहीं होती जिसको लेकर उसे बोलें ।। वह वैसे सदाचारकी विशुद्धतामें स्थित है, विशारद है, परास्त करके बोलता है, सभामें जानेपर न स्तब्ध (=गुम्) होता है, न विचलित होता है, विहितोंकी गणना करते (किनी) वातको नहीं छोळता ।। दही सभामें प्रश्न पूछनेपर,
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