पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४११

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३५२ ] ४-चुल्लवग्ग [ १९३८ कराये किया गया होता है।.....।" 94 बारह अधर्म कर्म समाप्त - (४) नियमानुसार प्रव्राजनीय दण्ड १-"भिक्षुओ! तीन वातोंसे युक्त प्रव्राजनीय कर्म, धर्म कर्म ० (कहा जाता) है—(१) सामने किया गया होता है; (२) पूछ कर किया गया होता है; (३) प्रतिज्ञा (=स्वीकृति) कराके किया गया होता है। ० २ ।" 106 बारह धर्म-कर्म समाप्त (५) प्रव्राजनीय दण्ड देने योग्य व्यक्ति १-"भिक्षुओ ! तीन वातोंसे युक्त भिक्षुको, चाहनेपर (=आकंखमान) संघ तर्जनीय कर्म करे ३"४२ छ आकंखमान समाप्त (६) दंडिन व्यक्तिके कर्तव्य "भिक्षुओ! जिस भिक्षुका प्र ब्रा ज नी य कर्म किया गया है उसे ठीकसे बरताव करना चाहिये, और वह ठीकसे बरताव यह हैं-(१) उपसम्पदा न देनी चाहिये; ० ३ ।” II3 तव सा रि पुत्र और मोग्गलानकी प्रधानतामें भिक्षु संघने कीटागिरिमें जा- -'अश्वजित् और पुनर्वसु भिक्षुओंको कीटागिरिमें नहीं वास करना चाहिये' (कह), अश्व जि त् और पुन व सु भिक्षुओंका की टा गिरि से प्रजाजनीय कर्म किया। वे संघ द्वारा प्रत्राजनीय कर्म किये जानेपर ठीकसे बरताव नहीं करते थे, रोवाँ नहीं गिराते थे, निस्तारके लायक (काम) नहीं करते थे, भिक्षुओंगे माफ़ी नहीं मांगते थे; (वल्कि भिक्षुओंकी) निंदा करते थे, परिहास करते थे,--भिक्षु छन्द (=स्वेच्छाचार), द्वेष, मोह, भय (के रास्तेपर) जानेवाले हैं, रहते भी हैं, चले जाते भी हैं। (भिक्षु-बेप) भी छोळ जाते हैं।' कहते थे। जो वह अल्पेच्छ ० भिक्षु थे, वे हैरान.. होते थे-केंगे अश्वजित् और पुनर्वगु भिक्षु संघ द्वारा प्रव्राजनीय कर्म किये जानेपर ठीकसे बरताव नहीं करते, ० (भिक्षु वेग) भी छोळ जाते हैं ! उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही।- “सचमुच भिक्षुओ ! ०?" “(हाँ) सचमुच भगवान् ।” ० फटकार कर धार्मिक कथा कह भगवान ने भिक्षुओंको सम्बोधित किया- "तो भिक्षुओ! संघ प्रजाजनीय कर्मको माफ़ न करे।" (७) दंड न माफ करने लायक व्यक्ति (१-५) "भिक्षुओ ! पाँच बातोंने युक्त निक्षु प्रजाजनीय कर्मको नहीं माफ़ करना चाहिये- (१) उपसम्पदा देता है; ०४ ।" 116 प्रदाजनीय कर्ममें अट्ठारह न प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त (८) दंड माफ करने लायक व्यक्ति (१-५) "भिक्ष ओ! पाच बातोंने वक्त भिक्षुके प्राननीय कर्मको माफ़ करना चाहिये-(१), तब • देवो पृष्ट ३४३ । ३ देखो पृष्ट ३४८ । १ देखो पृष्ट ३४२ । ४ देखो पृष्ट ३४५।